शिक्षादर्शन

शैक्षिक चिंतन का अधिष्ठान -- हिन्दू जीवन दर्शन
1. भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास
विद्या भारती एवं राष्ट्र भक्त शिक्षा शास्त्रियों का यह स्पष्ट मत है कि शिक्षा तभी व्यक्ति एवं राष्ट्र के जीवन के लिए उपयोगी होगी जब वह भारत के राष्ट्रीय जीवन दर्शन पर अधिष्ठित होगी जो मूलतः हिन्दू जीवन दर्शन है. अतः विद्या भारती ने हिन्दू जीवन दर्शन के अधिष्ठान पर भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास किया है. इसी के आधार पर शिक्षा के उददेश्य एवं बालक के विकास के संकल्पना निर्धारित की है.
2. शिक्षण पद्धति का आधार - भारतीय मनोविज्ञान
शिक्षा पद्धति का निर्धारण मनोविज्ञान के द्वारा होता है. प्रचलित शिक्षण पद्धति का आधार पश्चीमी देशों में विकसित मनोविज्ञान है जो विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित है. हिन्दू जीवन दर्शन पर आधारित भारतीय शिक्षा दर्शन के अनुसार बालक के सर्वांगीण विकास की अवधारणा विशुद्ध आध्यात्मिक है. परिपूर्ण मानव के विकास के संकल्पना पश्चिमी मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण पद्धति के द्वारा पूर्ण होना कदापि संभव नहीं है. अतः विद्या भारती ने भारतीय मनोविज्ञान का विकास किया है और उसी पर अपनी शिक्षण पद्धति को आधारित किया है तथा उसका नामकरण

"सरस्वती पंचपदीय शिक्षण विधि" किया है.
उसके पांच पद हैं :-
१- अधीति,
२. बोध,
३. अभ्यास,
४. प्रसार-स्वाध्याय एवं प्रवचन. प्राथमिक स्तर पर "सरस्वती शिशु मंदिर शिक्षण पद्धति" तथा
5. पूर्व प्राथमिक स्तर पर "शिशु वाटिका शिक्षण पद्धति" के नाम से इसे शिक्षा जगत में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई.

पांच आधारभूत विषय 

शारीरिक शिक्षा

बालक बलवान बने, बलिष्ठ बने, अच्छा खिलाड़ी बने, उसकी शारीरिक क्षमताओं का विकास हो, ऐसा बालक ही देश और धर्म की रक्षा कर सकेगा. विद्या भारती के सभी विद्यालयों में सभी बालक शारीरिक दृष्टि से विकास करें, यह प्रयास एवं व्यवस्था की जाती है. इसी दृष्टि से कक्षानुसार शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम विशेषज्ञों ने बनाया है. शारीरिक शिक्षा का विशेष प्रशिक्षण देने के लिए क्षेत्रशः केंद्र स्थापित किये गए हैं. विद्या भारती राष्ट्रीय खेल-कूद परिषद् का गठन किया जा रहा है.

योग शिक्षा

योग विद्या भारती की प्राचीन विद्या है. विश्व भर में इसको अपनाया जा रहा है. विद्या भारती का प्रयत्न है कि हमारे सभी बालक-बालिकाएं योगाभ्यासी बनें. योग के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास उत्तम रीति से होता है - यह विज्ञान से एवं अनुभव से सिद्ध है. प्रत्येक प्रदेश एवं क्षेत्र में योग शिक्षा केंद्र स्थापित किये हैं. जहाँ प्रयोग एवं आचार्य प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलते हैं. एक राष्ट्रीय स्तर पर भी योग शिक्षा संस्थान स्थापित करने की योजना विचाराधीन है.

नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा

बालक देश के भावी कर्णधार हैं. उनके चरित्र बल पर ही देश कि प्रतिष्ठा एवं विकास आधारित है. अतः नैतिकता, राष्ट्रभक्ति आदि मूल्यों की शिक्षा और जीवन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करने हेतु विद्या भारती ने यह पाठ्यक्रम बनाया है. यह समस्त शिक्षा प्रक्रिया का आधार विषय है. भारतीय संस्कृति, धर्म एवं जीवनादर्शों के अनुरूप बालकों के चरित्र का निर्माण करना विद्या भारती की शिक्षा प्रणाली का मुख्य लक्ष्य है

संस्कृत भाषा

संस्कृत भाषा की ही नहीं विश्व कि अधिकांश भाषाओँ की जननी है. संस्कृत साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की निधि भरी पड़ी है. संस्कृत भाषा के ज्ञान के बिना उससे हमारे छात्र अपरिचित रहेंगे. संस्कृत भारत की राष्ट्रीय एकता का सूत्र भी है. विद्या भारती ने इसी कारण संस्कृत भाषा के शिक्षण को अपने विद्यालय में महत्वपूर्ण स्थान दिया है. विद्या भारती संस्कृत विभाग कुरुक्षेत्र में स्थित है. इस विभाग ने सम्भाषण पद्धति के आधार पर "देववाणी संस्कृतम" नाम से पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है. संस्कृत के आचार्यों का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी इस विभाग के द्वारा संचालित होता है.

संगीत शिक्षण

संगीत वह कला है जो प्राणी के हृदय के अंतरतम तारों को झंकृत कर देती है. उदात्त भावनाओं के जागरण एवं संस्कार प्रक्रिया के माध्यम के रूप में संगीत का शिक्षण विद्या भारती के सभी विद्यालयों में सारे देश में चलता है. उच्च स्तर के गीत कैसेट तैयार कराए गए हैं. राष्ट्र भक्ति के गीतों का स्वर पूरे भारत में गूंजता है. जन्मदिवस के उत्सव हेतु गीत-कैसेट तैयार कराया है जो घर-घर में बजता है. संगीत शिक्षण का कक्षानुसार पाठ्यक्रम निर्धारित है. सभी भारतीय भाषाओँ में गीत छात्रों में प्रचलित हैं. भाषायें भिन्न हैं किन्तु भाव एक हैं. यह अनुभूति होती है

विद्या भारती संस्कृति बोध परियोजना

इसके अंतर्गत तीन कार्यक्रम संचालित होते हैं.-

१. अखिल भारतीय संस्कृत ज्ञान परीक्षा 
यह परीक्षा 1980 से विद्या भारती के कुरुक्षेत्र केंद्र से संचालित की जाती है. इसके माध्यम से छात्रों को भारतीय संस्कृति, धर्म, इतिहास, पर्वों, तीर्थस्थलों, पवित्र नदियों-पर्वतों एवं राष्ट्रीय महापुरुषों की जानकारी अत्यंत रोचक एवं सहज रूप में प्राप्त हो जाती है. इस योजना का लाभ विद्या भारती के अतिरिक्त अन्य विद्यालयों के छात्र, अध्यापक, माता-पिता आदि सर्वसाधारण लोग प्राप्त कर रहे हैं. भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय एकता को पुष्पित एवं पल्लवित करने में यह योजना पोषक सिद्ध हो रही है. इस वर्ष 2012 में अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में ....................... लाख से अधिक छात्र सम्मिलित हुए हैं. यह संख्या प्रति वर्ष बढ़ रही है.
२. संस्कृत ज्ञान परीक्षा (आचार्यों के लिए) 
आचार्यों हेतु भी संस्कृति ज्ञान परीक्षा प्रवेशिका, मध्यमा, उत्तमा एवं प्रज्ञा इन चार स्तरों पर आयोजित के जाती है जिससे कि आचार्यों को भी उपर्युक्त विषयों का ज्ञान हो सके. सामान्यतया प्रचलित शिक्षा प्रणाली से निकले हुए युवक अपने धर्म, संस्कृति, इतिहास आदि विषयों के सामान्य ज्ञान में भी शून्य होते हैं. उनके विकास में यह योजना प्रभावी सिद्ध हो रही है.
३. प्रश्न मंच कार्यक्रम 
प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर के अलग-अलग समूहों के लिए प्रश्न मंच कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर तक आयोजित किया जाता है. यह अत्यंत रोचक कार्यक्रम होता है, जिसके माध्यम से छात्र अपनी पुण्य भूमि भारत, इतिहास एवं सांस्कृतिक विषयों का परिचय सहज रूप से प्राप्त कर लेते हैं.
४. निबंध प्रतियोगिता
यह कार्यक्रम अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया जाता है. इसका आयोजन प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च स्तर माध्यमिक स्तर के छात्रों एवं आचार्यों के लिए अलग-अलग होता है. अपने-अपने समूह में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कार दिए जाते ह
ैं. निबंध के विषय भी पुण्य भूमि भारत, इतिहास, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र के महापुरुष एवं भारतीय संस्कृति से सम्बंधित होते हैं.


संस्कृति बोध परियोजना
विश्व में प्रत्येक देश अपनी संस्कृति, परम्पराओं, जीवन मूल्यों, ज्ञान-विज्ञान एवं महापुरुषों के अनुभवों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में भावी पीढ़ी को शिक्षा के माध्यम से सौंपने का प्रयास करता है। भारत की महान् आध्यात्मिक संस्कृति, श्रेष्ठ परम्पराएं, जीवन मूल्य, महापुरुषों के आदर्श जीवन-चरित्र तथा यहाँ का ज्ञान-विज्ञान इस देश की ही नहीं, विश्व की अमूल्य-निधि माने जाते हैं। परन्तु वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति द्वारा अपनी इस अप्रतिम राष्ट्रीय निधि को भावी पीढ़ी को सौंपना तो दूर रहा, उससे परिचित कराने का कार्य भी नहीं हो पा रहा है। परिणामतः राष्ट्रीय स्वाभिमान-शून्यता एवं विदेशी संस्कृति के अन्धानुकरण की प्रवृत्ति छात्रों में बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। हमारी यह दृढ़ मान्यता है कि यदि हमारे छात्रों को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के साथ अपनी महान उज्ज्वल संस्कृति, गौरवपूर्ण इतिहास, महापुरुषों के जीवन-चरित्र, श्रेष्ठ राष्ट्रीय परम्पराओं का परिचय कराया जाए तो आज के निराशापूर्ण वातावरण में भी आशा की किरण उत्पन्न होकर विद्यार्थी जगत में अपेक्षित परिवर्तन दिखाई देगा। इस निमित्त विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के द्वारा संचालित मुख्य गतिविधियाँ अग्रलिखित हैं: -


1. संस्कृति बोध परियोजना
o संस्कृति ज्ञान परीक्षा
o संस्कृति ज्ञान प्रश्नमंच
o निबन्ध लेखन प्रतियोगिता (छात्रों की)
o निबन्ध लेखन प्रतियोगिता (आचार्यों की
o आचार्य संस्कृति ज्ञान परीक्षा(प्रवेशिका, मध्यमा, उत्तमा)
o अखिल भारतीय प्रज्ञा परीक्षा

2. चित्र व साहित्य प्रकाशन एवं शैक्षिक सी.डी. आदि का निर्माण।

3. ज्ञान-विज्ञान मेला

विज्ञान प्रदर्शनी, प्रश्न मंच तथा विषय प्रस्तुति (पत्र वाचन) संस्कृति ज्ञान, प्रश्नमंच, विषय प्रस्तुति, वैदिक गणित प्रश्नमंच, पत्र वाचन आदि।

4. विचार गोष्ठियों एवं शोध गोष्ठियों का आयोजन।

5. संगीत केन्द्र, संगीत आचार्य प्रशिक्षण एवं कला पर्व का आयोजन।

6. संवेदनशील एवं उपेक्षित क्षेत्रों में शिक्षा प्रसार के लिए आर्थिक सहायता करना।

7. लेह(लद्दाख) संस्कृति केंद्र का संचालन

शिशु वाटिका (पूर्व प्राथमिक शिक्षा)

भारत में सामान्यता प्राथमिक विद्यालयों में ६ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर बालक कक्षा प्रथम में प्रवेश लेकर अपने औपचारिक शिक्षा आरम्भ करता है. 3 वर्ष से 6 वर्ष का उसका समय प्रायः परिवार में ही व्यतीत होता है. प्राचीन काल में भारत में जब परिवार संस्था सांस्कृतिक दृष्टि से सशक्त थी उस समय बालक परिवार के स्नेहपूर्ण वातावरण में रहकर योग्य संस्कार ग्रहण कर विकास करता था. माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका होती थी. किन्तु आधुनिक काल में औद्योगिक विकास एवं पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव विशेष रूप से नगरों में, परिवारों पर भी हुआ और इसके परिणामस्वरूप 2 वर्ष का होते ही बालक को स्कूल भेजने की आवश्यकता अनुभव होने लगी. नगरों में इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए "मोंटेसरी", "किंडरगार्टन" या नर्सरी स्कूलों के नाम पर विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी. नगरों एवं महानगरों के गली-गली में ये विद्यालय खुल गए और संचालकों के लिए व्यवसाय के रूप में अच्छे धनार्जन करने के साधन बन गए.
मोंटेसरी या किंडरगार्टन के नाम पर चलने वाले इन विद्यालयों में कोमल शिशुओं पर शिक्षा की दृष्टि से घोर अत्याचार होता है. भारी-भारी बस्तों के बोझ ने इनके बचपन को उनसे छीन लिया. अंग्रेजी माध्यम के नाम पर पश्चिमीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है. देश के लिए घातक इस परिस्थिति को देखकर विद्या भारती ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा की ओर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया. भारतीय संस्कृति एवं स्वदेशी परिवेश के अनुरूप शिशु शिक्षा पद्धति "शिशु वाटिका" का विकास किया. शिशु का शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास की अनौपचारिक शिक्षा पद्धति "शिशु वाटिका" के नाम से प्रचलित हुई. अक्षर ज्ञान और अंक ज्ञान के लिए पुस्तकों और कापियों के बोझ से शिशु को मुक्ति प्रदान की गयी. खेल, गीत, कथा कथन, इन्द्रिय विकास, भाषा-कौशल, विज्ञान अनुभव,रचनात्मक-कार्य, मुक्त व्यवसाय, चित्रकला-हस्तकला, दैनन्दिन जीवन व्यवहार आदि के अनौपचारिक कार्यकलापों के माध्यम से "शिशु वाटिका" कक्षाएँ शिशुओं की आनंद भरी किलकारियों से गूंजती हैं और शिशु सहज भाव से शिक्षा और संस्कार प्राप्त कर विकास करते हैं.
विद्या भारती ने शिशुओं के साथ उनके माता-पिता एवं परिवारों को भी प्रशिक्षित एवं संस्कारित करने का कार्यक्रम "शिशु वाटिका" के अंतर्गत अपनाया है. शिशु के समुचित विकास में परिवार विशेष रूप से माता का दायित्व है. इस दायित्व बोध का जागरण एवं हिंदुत्व के संस्कारों से युक्त घाट का वातावरण निर्माण करने का प्रयास देश भर में "शिशु वाटिका" के माध्यम से हो रहा है.

आदर्श विद्यालय दायित्व

 (1) Academic Head शैक्षिक प्रमुख :-

- ऐसा व्यक्ति जो शैक्षिक क्षेत्र की जिम्मेदारी वहन करता है।
-  एकेडमिक हेड का मुख्य कार्य विद्यालय में सशक्त शैक्षिक नेतृत्व करना है, उससे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह सम्वतः शारदार शैक्षणिक गतिविधियों से संस्था का उचित विकास करें। नेतृत्व विकास एवं प्रबंधन के बीच कड़ी का कार्य करें ।
-  खुली दृष्टि के साथ अन्य आचार्यो के आन्तरिक दायित्व की निगरानी करें और व्यक्तिगत कुशलताओं को बढ़ाये।
-  शैक्षिक पारदर्शी नेतृत्व एवं प्रबंधन ।
- शिक्षण एवं विद्यार्थी के लिये आवश्यक उत्तरदायित्व ।
-  शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु शिक्षक, विद्यार्थी एवं विद्यालय के लिए शोध करना ।
-  विद्यालय को ज्ञान संप्रेषण हेतु नये अवसर प्रदान करना ।
-  समाज प्रबंधन की दृष्टि से शिक्षक एवं विद्यार्थी को तैयार करना ।
-  वित्तीय प्रबंधन पर नियंत्रण रखना ।
-  शैक्षिक विकास के क्षेत्र में नित नए नवाचार करना एवं कुशलताऐं बढ़ाना ।
-  अध्ययन/अध्यापन के क्षेत्र में प्रक्रिया का विकास करना ।
- शिक्षण क्षेत्र में विद्यालय का नेतृत्व खड़ा करना ।
- विद्यालय के आन्तरिक विकास में संतुलन स्थापति करना ।
- आवश्यक सुधार हेतु प्राचार्य एवं एस.एम.सी. से युक्त संगत निर्णय कराकर क्रियान्वयन करना ।


(2) Counseller  सलाहकार:- 
-परामर्श प्राप्तकर्ता छात्र, शिक्षक, अभिभावक एवं अन्य हितचिंतक को सम्मान के साथ विश्वनीय संबंध बनाना ।
- धैर्य एवं संवेदना के साथ सहानुभूति का व्यवहार करना ।
- परामर्श प्राप्त कर्ता की बात को गंभीरता से सुनना और सुखद, संतोषप्रद एवं परिणामकारी सलाह देना ।
- परामर्श प्राप्तकर्ता को गहरी समझ हेतु सहयोग करना ।
- परामर्श प्राप्तकर्ता को क्या कहना चाहिए क्या करना चाहिए विशेष रुप से चुनौतियों पूर्ण परिस्थितियों में कैसा व्यवहार करना यह सिखाना चाहिए।
- स्व विकास हेतु उचित प्रशिक्षण की सलाह देना ।
- परामर्श प्राप्त कर्ता का प्रामाणिक मूल्यांकन कर उसे सुधार हेतु उचित सलाह देना ।
- परामर्श दाता की जानकारी और प्राप्तकर्ता की जानकारी अभिलेख के रुप में सुरक्षित रखना ।
- समय पर सलाह दूसरों के लिये उपयोगी बनें इस हेतु मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र देना ।
-परामर्श प्राप्तकर्ता परीक्षा, नोकरी, व्यवसाय आदि में सफल हो सके इस हेतु उसे अवसाद की स्थिति से बाहर निकालना ।
- परिवार, समाज, विद्यालय एवं स्वयं परामर्श दाता के बीच मधुर संबंध का व्यवहार उत्पन्न करना ।


(3) PRO (Public Relation Officer)  जनसम्पर्क अधिकारी :- 

- जन सम्पर्क के माध्यम से एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के बीच सम्पर्क सेतु का कार्य करता है ।
- वह अपने भाव विचार जानकारियों एवं ज्ञान का आदान-प्रदान करता है ।
-हम सामाजिक प्राणी है अतः जाने अनजाने हम सब जनसम्पर्क के दायरे में ।

शैक्षिक प्रबंधन

1. आदर्श विद्यालय त्ज्म् के आधार पर संचालित हो। समय 7 घंटे, शिक्षण (विषय) हेतु 5.30 घंटे
2. पहला एवं भोजनावकाश के बाद का कालखण्ड 45 मिनिट का होना शेष 40 मिनिट अधिकतम 8 कालखंड। (दो अवकाश- एक 20 मिनट, दूसरा 10 मिनट का भी कर सकते हैं)
3. शिक्षक को 30 मि. पहले आना, 1 घंटे बाद जाना।
4. कक्षा कक्ष व विद्यालय व्यवस्था अवलोकन प्रतिदिन करना।
5. 30 मिनिट पहले- पढ़ाने वाले विषय की तैयारी एवं सहायक सामग्री का संकलन, एवं निगरानी।
6. 1 घंटे बाद में- सहायक सामग्री तैयारी, एवं दिन भर की समीक्षा।
7. संगणक- 20-20 कम्प्यूटर की दो प्रयोगशालाएँ होना चाहिए अथवा 40 कम्प्यूटर की एक समृद्ध प्रयोगशाला।
8. विषय प्रयोगशालाऐं 11वी एवं 12वीं की हों। विज्ञान प्रयोगशाला कक्षा 9-10वी तक हों। 6से 8 तक विज्ञान क्रियाधारित (एक्टिविटी) कक्ष हो। विज्ञान किट की उपलब्धता हो।
9. विषयशः कक्ष 8वीं तक तथा उसके बाद प्रयोगशाला हों।
10. 8वी तक चलित पुस्तकालय, 9 से 12 तक कक्षाशः पुस्तकालय। संभव हो तो ई-लाइब्रेरी बने (रूचि अनुसार पुस्तकें अधिकतम हो)
11. शिक्षण/प्रशिक्षण की पुस्तकें /शिक्षक के विकास के अनुरूप।
12. सभी विषयों की विषय परिषदों का गठन (आधारभूत विषय एवं केन्द्रीय विषय) रूचि अनुसार।
13. पाँच आधारभूत विषयों का क्रियान्वयन।
14. नियमित कालखण्ड एकान्तर क्रम हो।
15. कक्षा 8वीं तक बाल सभा अनिवार्य (साप्ताहिक) हो।
16. शिक्षण तकनीकी की आवश्यकतानुसार प्रयोग स्मार्ट क्लास प्रोजेक्टर, इंटरनेट आदि।
17. 500 संख्या पर न्यूनतम 4 स्मार्ट क्लास हो।
18. कक्षा स्तर/विषय वस्तु अनुरूप उपयोग।
19. आनलाईन कक्षायें।
20. शैक्षणिक भ्रमण आवश्यकतानुरूप, सरस्वती यात्राऐं की योजना पर्याप्त समय पहले बनायें।
21. क्रिया एवं गतिविधि आधारित शिक्षण।
22. मासिक अभ्यास/मूल्यांकन सतत् एवं व्यापक 8वीं तक। मासिक मूल्यांकन 9 से 12वीं तक।
23. शिक्षक दैनंदिनी एवं मूल्यांकन पंजी का संधारण।

सुझाव-

1. बालसभा साप्ताहिक हो सभी कक्षाओं की।
2. शैक्षणिक भ्रमण माह में न्यूनतम 3 दिन हो।
3. हर बच्चे का शैक्षणिक भ्रमण हो।
4. विषयशः शैक्षणिक भ्रमण हो।
5. 40 मिनिट का शैक्षिक प्रबंधन आचार्य के साथ
6 11वी-12वीं की विज्ञान कक्षाऐं प्रयोगशाला में हो।
7. विद्यालय पुस्तकालय तथा कक्षा पुस्तकालय पृथक हो।
8. कौशल विकास अनुसार शैक्षिक यात्रायें हो।

अध्ययन/अध्यापन

 अध्ययन/अध्यापन
आयु के अनुरूप गतिविधियाँ- योग्यता, क्षमता का विकास, बच्चों को समझने और उनको पढ़ा ले ऐसी योजना बनाना।

1. प्रयोगशालाओं का अधिक से अधिक प्रयोग करे, क्रियाधारित शिक्षण करें।
2. शिक्षण सहायक सामग्री का अधिकतम प्रयोग करें,।
3. आचार्य अपना स्वाध्याय करें उसी के साथ पाठयोजना बनाकर क्रियाकलाप तय करें (पंचपदी के अनुसार पाठ योजना बनाएं)
4. तकनीकी का प्रयोग करें- Samrt class, projector लैपटाप व इन्टरनेट का प्रयोग करें। PPT के माध्यम से कक्षाए पढ़ायें।
5. कक्षा पुस्तकालय का प्रयोग करें (संदर्भ पुस्तक, अभ्यास पुस्तिकायें)
6. मासिक वर्ग- शैक्षिक स्तर पर तय करना, विभागाध्यक्ष सभी विषय आचार्यां का प्रशिक्षण कराये। विषयशः समूह बनाकर विषय विशेषज्ञ बुलाये एवं विभागाध्यक्ष मार्गदर्शन करें। साप्ताहिक प्रशिक्षण विभागाध्यक्ष एवं मासिक प्रशिक्षण-विशेषज्ञ द्वारा।
- विषय अनुसार प्रयोगशाला (विषय कक्ष का निर्माण करना)
- विषयशः समूह चर्चा कराना, एवं प्रश्नमंच का आयोजन कराना।
- प्रश्नों का निर्माण कराना, प्रश्न मंच के द्वारा उत्तर ज्ञात कराना।
- वर्ष के प्रारम्भ में विषयाचार्य इकाईशः पंचपदी की योजना लिपिबद्ध करें और उसमें सहायक सामग्री (जो निर्माण करना है) क्रियाकलाप तैयार करना।
- विषयाचार्य पाठशः Project work तैयार करें।
- कमजोर छात्रों के लिये- प्रोजेक्ट, क्रियाकलाप, सहायक सामग्री अलग से तय करना।
- अच्छे छात्रों द्वारा कमजोर छात्रों का अध्यापन कार्य करायें।
- प्रश्नशः पूरी पुस्तक की तैयारी करें (जैसे- खाली स्थान, विकल्प, हाँ या ना में उत्तर)
- 10वी-12वीं को परीक्षा परिणाम के लिये पढ़ाये, शेष कक्षाओं में ज्ञानवृद्धि के आधार पर अध्ययन अध्यापन करायें।
- निदानात्मक एवं उपचारात्मक निदान के आधार पर पढ़ायें।
- प्रतिभाशाली छात्रों के लिये -राष्ट्रीय प्रतिभा खोज एवं ओलम्पियाड की तैयारी करायें।
- प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के आधार पर शिक्षण प्रक्रिया अपनाएं।
- विषय वस्तु का विभाजन सरल से कठिन की ओर करें (प्रारम्भ में ही)
- पाठयक्रम को प्रारम्भ करने से पूर्व आधार पाठ्यक्रम Fundamental तैयार करना।
- प्रश्न बनाना- उत्तर लिखवाना, यह अभ्यास कक्षा में कराना कभी-कभी उत्तरों से प्रश्न निकालना।(Fundamentals Class)

सामाजिक सरोकार

1. संस्कार केन्द्र- विद्यालय के बजट का 2 प्रतिशत खर्च सेवा कार्य हेतु/न्यूनतम 10 संस्कार केन्द्र।
2. विद्याभारती परिचय (जनसंपर्क सप्ताह/पखवाड़ा)- सहायक सामग्री- जैसे मुद्रित पत्रिका, Folder, Pamplatesसूचीबद्ध करके सुझाव प्राप्त करना, बिना अपेक्षा के अपनी बात करना।
3. संस्कृति ज्ञान परीक्षा- भैया/बहिनों के माध्यम से, विद्याभारती को जानने वाले चयनित आचार्यों को विद्यालय चिन्हित करना (संख्या तय करना) तथा शेष आचार्यों को 10-10 संख्या का लक्ष्य देना। क्रियान्वयन- अपने आदर्श विद्यालय - अपने भैया-बहिन 100 प्रतिशत, अन्य भैया-बहिन 200 प्रतिशत।
4. स्वास्थ्य परीक्षण शिविर- विद्यालय/भैया-बहिन/आचार्यों के माध्यम से विद्यालय के साथ आस पड़ोस में भी स्वास्थ्य परीक्षण
- उत्तम आहार विषय - आयुर्वेदिक चिकित्सा
- योग के विषय - रसोई ही चिकित्सालय
5. स्वदेशी अपनाओं अभियान- स्वदेशी परिवार, स्वदेशी वस्तु सूची/ नुक्कड़ नाटक,
6. ऊर्जा संरक्षण- तुलनात्मक अध्ययन करना, LED, सौर/ लकड़ी से प्राप्त ऊर्जा (किसी भी ऊर्जा का संरक्षण)
7. पर्यावरण संरक्षण- वृक्षारोपण, जलसंरक्षण, हमारा विद्यालय प्लास्टिक मुक्त हो यह शपथ दिलवाये।
8. स्थानीय सामाजिक गतिविधियों में विद्यालय की सहभागिता- हर विद्यालय को तय करना कि हम कौन सी गतिविधि में कार्य करें।
9. शासकीय संस्थानों की Social Activities- NCC, NSS, Scout Guide में सहभागिता।
10. संस्कृति संरक्षण- गरबा, हरियाली महोत्सव, सावन मेला, भैया-बहनों के अभिभावकों का वनसंचार, रंगोली प्रतियोगिता, विभिन्न विषयों पर नियमित चर्चा।
11. ग्राम्य जीवन अनुभव-
12. सामाजिक सरोकार –

भौतिक संसाधन

 भौतिक संसाधन
1. भूमि- शासन की मान्यता अनुसार हो, खेल मैदान हो, बागवानी (2 एकड़)
2. भवन- पर्याप्त कक्षा कक्ष प्रकाश एवं हवायुक्त
- प्राचार्य/प्रधानाचार्य कक्ष/ कार्यालय सर्व सुविधायुक्त कम्प्यूटरीकृत/स्टाफ कक्ष/स्वागत कक्ष/ अतिथि कक्ष/ अन्नपूर्णा कक्ष।
3. - प्रयोगशालाऐं (संकाय के अनुसार) (पी.सी.बी.)
- गणित प्रयोगशाला
- भाषा प्रयोगशाला
4. पुस्तकालय एवं वाचनालय स्तर और व्यवस्थानुसार हो - स्वतंत्र कक्ष, ई-लाइब्रेरी
रखरखाव की कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था हो- कक्षा कक्ष-चलित पुस्तकालय
5. स्मार्ट क्लास - न्यूनतम 4 इकाई अनुसार (प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक)
6. कम्प्यूटर लैब-इंटरनेट युक्त/ प्रोजेक्टर युक्त/ वाई फाई, 40 कम्प्यूटर की प्रयोगशाला।
7. संगीत कक्ष + खेलकूद कक्ष + गतिविधि कक्ष + बड़ा सभागार 5000-6000 स्क्वेयर फुट
8. प्रसाधन - स्वतंत्र प्रसाधन, आचार्य परिवार, भैया, बहिन, पर्याप्त मात्रा में , समुचित सफाई।
9. पेयजल , पानी का स्त्रोत - वाटर फ्यूरीफायर , पेयजल टंकी की सफाई 8 दिन में। सुविधा और क्षमता के अनुसार वाटर कूलर लगे हो।
10. फर्नीचर - इकाई के अनुसार एवं आयु वर्ग के अनुसार (शिशुवाटिका/प्राथमिक/ माध्यमिक/उच्चतर) एवं सभी अन्य कक्षों में आवश्यकता ओर उपयोगिता अनुसार फर्नीचर हो।
11. विद्युत व्यवस्था + एल.ई.डी. लगी हो, पर्याप्त पंखे।
12. बोर्ड- ग्रीन बोर्ड, सफेद बोर्ड, सेरेमिक बोर्ड कक्षा में यथा स्थान लगे हो , भवन में गतिविधि बोर्ड, डिस्प्ले बोर्ड (बच्चों की उपलब्धियां दर्शाने वाली)
13. शिकायत एवं सुझाव पेटी यथोचित स्थान पर।
14. इन्वेर्टर एवं जनरेटर आवश्यकता/क्षमता अनुसार।
15. ध्वनि विस्तारक यंत्र का सेट-अप- संपूर्ण भवन में सूचना सम्प्रेषण की उचित व्यवस्था।
16. इकाईशः घोष एवं घोष सामग्री
17. पृथक से शिशुवाटिका जिससे 12 आयाम और गतिविधि पर आधारित संसाधन। तरणताल आदि।
18. आवश्यकता के अनुसार - वाहन व्यवस्था एवं रखरखाव हेतु स्टेण्ड
19. सी.सी.टी.व्हीं. कैमरे
20. भवन का रखरखाव, पुताई एवं मैन्टीनेन्स समय-समय पर।
21. माँ सरस्वती का मंदिर
22. कार्यक्रम हेतु मंच
23. सामग्री सुधार हेतु + रखरखाव में Toll-Box हो सभी के
24. First -Aid Box इकाईशः या चिकित्सा कक्ष हो।
25. स्वच्छता दृष्टि से डस्टबिन , जैविक + रासायनिक अलग-अलग कचरा प्रबंधन की व्यवस्था उपयुक्त हो।
26. सुरक्षा हेतु अग्नि शमन यंत्र।
27. खेल हेतु 5 इनडोर $ 5 आउटडोर खेल आवश्यक रूप से हो।

छात्रों के लिए नियमित गतिविधि

छात्रों  के लिए नियमित गतिविधि

1. वंदना सत्र-
समाचार वाचन, पंचाग, मासिक गीत, ध्यान, प्रातः स्मरण, एकात्मता स्त्रोत, एकता मंत्र, हमारा लक्ष्य, प्रबोधन,अष्टादशशलोकीगीता, बोधकथा, राष्ट्रगान, वन्दे मातरम् ( इसमें शैक्षिक पक्ष/ सामान्य ज्ञान/योग/ जन्मदिन जोड़े) चैपाई/श्लोक/दोहा/भावार्थ (वंदना/एकात्मता स्त्रोत) आदि का उचित संयोजन दिन अनुसार करें।

2. बालसभा
- प्रत्येक ईकाई की कक्षाशः सभा हो (कक्षाशः) (बहिनों की बालसभा पृथक हो)
- पूर्व नियोजित विषय चयनित हों।
- हमारी प्रतियोगिताओं का समय हो(बौद्धिक)
- रंगमंचीय कार्यक्रम गायन/वादन
- बाल सभा में आर.टी.ई. की अधिकांश गतिविधियों को समाविष्ट किया जा सकता है।
3. बाल भारती- छात्रों की संसद व नियमित बैठक / कार्यक्रम, भैया-बहिन, सामूहिक दायित्व बोध, / दायित्वों का निर्वहन।
4. कक्षाशः प्रतियोगिता- गीत, भोजन मंत्र, बस्ता सज्जा, कक्षा सज्जा, गणवेश, निबन्ध लेखन, सुलेख, गीता पाठ, दीप मंत्र- वंदना, प्रार्थना, शान्तिपाठ आदि।
5. यात्रा- व्यक्ति विकास शिविर (आवासीय शिविर), ग्राम दर्शन, वन दर्शन, शैक्षिक भ्रमण, देश दर्शन,
6. खेल गतिविधि- (आउट डोर/इण्डोर) अपनी क्षमतानुसार, प्रशिक्षक आदि
7. साधना- संगीत साधना, योग साधना, श्रम साधना,
8. नैतिक शिक्षा- हवन, पक्षियों को दाना-पानी, जलसंरक्षण, संवर्द्धन, स्वच्छता
9. शारीरिक- 10 मिनिट की व्यायाम श्रंृखला, एन.सी.सी., स्काउट गाइड की गतिविधि, घोष प्रशिक्षण।
10. अन्य- बागवानी में सहयोग, वृक्षारोपण, मैदान की सफाई/पशु पक्षी सेवा/स्वच्छता, बोध पट लेखन, रांगोली व अन्य साज सज्जा कराना आदि
15. संस्कार केन्द्र दर्शन (सहभागिता)
17. स्वदेशी/ऊर्जा संरक्षण
18. विभिन्न जयन्ती/दिवसों/पुण्य तिथियों पर मार्गदर्शन /भैया-बहिनों के कार्यक्रम।
22. वाचनालय में जाना (पत्रिका, पत्र),
24. प्रतिदिन उपस्थिति, गणवेश, समय पालन, स्वच्छता परीक्षण।
25. आदर्श बालक की दिनचर्या पालन इन सभी की कार्ययोजना बने।
27. नगर की विभिन्न संस्थाओं की प्रतियोगिताओं में सहभागिता/ अपने परिसर में विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन।

प्रबंध समिति

 
प्रबंध समिति
1. प्रबंध समिति का गठन विधान के अनुसार हों। निर्वाचन प्रक्रिया का पूर्णतः पालन किया जाऐं।
2. साधारण सभा में सदस्यों की संख्या आवश्यकतानुसार व श्रेणी अनुसार हो।
3. साधारण सभा में स्थानीय सभी वर्गों के प्रतिष्ठित लोगों का प्रतिनिधित्व हो जो (समविचारी हो) चिकित्सक, इन्जीनियर, अधिवक्ता, सी.ए., शिक्षाविद्, समाजसेवी, व्यापारी हो सकते हैं। जिसमें 40 प्रतिशत युवाओं को प्राथमिकता दी जावें
4. प्रबंध समिति के गठन में उपरोक्त श्रेणियों का प्रतिनिधित्व के साथ मातृशक्ति का एवं पूर्व छात्रों को जोड़ा जाये। मातृशक्ति की सहभागिता अनिवार्य की जाये।
5. प्रबंध समिति की बैठक माह में 1 बार अवश्य हो।
6. कार्यकारिणी से सक्रिय कार्यकर्ताओं का कोर ग्रुप बने जिसकी पाक्षिक /साप्ताहिक बैठक करें।
7. प्रबंध समिति के सभी सदस्यों में अभिरूचि/योग्यता के आधार पर कार्य विभाजन होना चाहिये।
8. प्रत्येक सदस्य को कार्य की स्पष्टता एवं दायित्व बोध। प्रबंध समिति के सदस्यों में कार्यकर्ता भाव निर्माण के लिए वर्ष में न्यूनतम दो बार प्रबोधन वर्ग।
9. साधारण सभा के सदस्यों को विद्याभारती का साहित्य उपलब्ध कराना।
10. प्रबंधकारिणी बैठक में विद्याभारती प्रदीपिका के एक प्रेरक प्रसंग का वाचन हो/सरस्वती वंदना हो।
11. समिति के सदस्यों का विद्यालय प्रवास योजना पूर्वक, उद्देश्य परक होना चाहिये।
12. आचार्य परिवार एवं साधारण सभा के साथ वन संचार का कार्यक्रम आयोजन होना चाहिये।
13. समिति द्वारा समाज के प्रबुद्ध वर्ग को विद्यालय से जोड़ना।
14. आचार्य परिवार का सम्मान/ प्रोत्साहन कार्यक्रम आयोजित करना।
15. समिति द्वारा विद्यालय की आवश्यकता पूर्ति हेतु समाज से सहयोग प्राप्त करने का स्वभाव बनाना।
16. प्रबंध समिति को शासकीय नियमों से अवगत होना चाहिये।
17. समिति सदस्य एवं अन्य आगंतुकों हेतु रजिस्टर रखना जिसमें सुझाव एवं प्रतिपुष्टि ली जाये।
18. प्रत्येक वर्ष 30 जून तक साधारण सभा की बैठक अवश्य होना चाहिये।
19. प्रबंध समिति की बैठक साधारण सभा से पूर्व हो जिसमें आडिट रिपोर्ट एवं बजट को पारित करना चाहिये।
20. प्रत्येक बैठक में गत बैठक के क्रियान्वयन पर चर्चा होना चाहिये।

आचार्यों का प्रशिक्षण

 
आचार्यों का प्रशिक्षण
(1) प्रशिक्षण- हमारे वि़द्यालय के सभी आचार्य-दीदी शासन के नियमानुसार प्रशिक्षित होना चाहिए।
प्राथमिक में D.Ed,माध्यमिक में स्नातक B.Ed, उच्चतर माध्यमिक में स्नातकोत्तर B.Ed
(2) व्यवहारिक प्रशिक्षण- अकादमिक प्रशिक्षण होने के बाद भी उन्हें अच्छे
(1) शिक्षक के नाते व्यवहारिक प्रशिक्षित होना चाहिए।
(2) अच्छे शिक्षक के श्रेष्ठ गुण उन्हें बताना होगा।
(3) श्रेष्ठ शिक्षकों की जीवनीयाँ उन्हें पढ़ने के लिए देना।
(3) आधुनिक तकनीकी का प्रशिक्षण (1) कम्प्यूटर (2) इन्टरनेट आदि-आदि
(4) विषयानुसार प्रशिक्षण- अपने विषय में तज्ञ होने के लिए आचार्य को विषय का गहन प्रशिक्षण देना।
(5) आधारभूत विषयों का प्रशिक्षण- प्रत्येक आचार्य-दीदी किसी न किसी एक विषय का प्रशिक्षण प्राप्त करे।
(6) योजना के विषयों का प्रायोगिक प्रशिक्षण- जैसे, मातृगोष्ठी, वन्दना, अभिभावक सम्मेलन, कार्यक्रम में अतिथि आगमन से प्रस्थान व कार्यक्रम की समीक्षा तक, देश दर्शन इन सभी विषयों का व्यवहारिक प्रशिक्षण। इन सब विषयों का मासिक वर्ग में प्रशिक्षण देना चाहिए।
(7) आचार्य/दीदियों का नैतिक सम्बोधन- (1) आचार्य/दीदियों द्वारा विद्यालय में आपसी बोल-चाल में मानक हिन्दी का प्रयोग। (2) भैया/बहिनों के मध्य बहुत मर्यादित व्यवहारिक बातचीत होनी चाहिए। इस हेतु मासिक वर्गों में ‘नैतिक मूल्य’ विषय पर किसी शिक्षाविद् से प्रबोधन कराना।
(8) सामाजिक गतिविधियों में आचार्य की भूमिका- आचार्य को सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता करने हेतु प्रेरित करना।
(9) मातृ संगठन (संघ के प्रशिक्षण)- आचार्य को संघ का प्रशिक्षण होना चाहिए। कम से कम प्राथमिक वर्ग का प्रशिक्षण होना ही चाहिए। प्रधानाचार्य संघ शिक्षा वर्ग प्रशिक्षित हो ऐसा प्रयास करना।
(10) न्यूनतम संसाधनों पर जीवन जीने की कला का विकास- आचार्य परिवार को ग्राम्य जीवन का दर्शन कराना। और कम से कम संसाधन से अपना आदर्श जीवन जीना। यह अभाव के कारण नहीं स्वभाव के कारण बनें।
(11) साहसिक यात्रा- साहसिक यात्राएँ अनुभव व आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
(12) पारिवारिक भाव का विकास- विद्यालय में कार्यरत सभी आचार्यों में परिवार भाव का होना। आचार्य परिवार मिलन कार्यक्रम।
(13) आचार्य कल्याणकारी योजनाएँ- आचार्य सुरक्षा न्यास, बीमा, चिकित्सा बीमा, उपादान में अनिवार्य रूप से सहभागिता होना चाहिए। इसलिए उन्हें योजनाओं से अवगत करायें।
भवन निर्माण या उसके बेटा/बेटी की शादी है उसमें सहयोग करें समितियों को आर्थिक पक्ष का भी विकास करना।
(14) सुन्दर लेखन एवं शुद्ध लेखन का विकास। अंगे्रजी सम्भाषण एवं वैदिक गणित का अभ्यास भी होना चाहिए।
(15) 5 दिवसीय अभ्यास वर्ग-1
(16) आचार्यों का प्रधानाचार्य द्वारा मूल्यांकन। शैक्षिक /व्यवस्थागत/दायित्व अनुसार हो।

मानवीय संसाधन का विकास

 
मानवीय संसाधन का विकास
(अभिभावक, पूर्व छात्र एवं पूर्व आचार्य)

पूर्व छात्र -
विद्यालय में 3 श्रेणियों में (1) अध्ययनरत (2) स्वपोषी (3) अप्रवासी (विदेशस्थ) पूर्व छात्र को पंजीकृत किया जावें।
(1) पूर्व छात्रों की परिषद् का विधान अनुसार गठन एवं कार्य विभाजन।
(2) मासिक बैठक या पाक्षिक बैठक।
(3) वृहत्त सम्मेलन वर्ष में एक बार अवश्य हो। श्रेणीशः/सत्रशः सूचना की व्यवस्था करें ।
(4) विद्याभारती के कार्य विस्तार हेतु सहयोग लेना-
खेलकूद प्रशिक्षक, निर्णायक, समिति सदस्य, अतिथि, शिक्षण हेतु, प्रबोधन, कैरियर गाईडेंस, सामाजिक कार्य में सेवा कार्य में सहयोगी, प्रवक्ता के रुप में, विभिन्न गतिविधियों/ विधाओं के प्रमुख के रुप में, आर्थिक सहयोग हेतु , उत्सव,पर्व में, वैचारिक संगठन के पोषण में सहयोग।
(5) प्रबोधन की दृष्टि से पूर्व छात्रों की शैक्षिक गोष्ठी की नियमितता का आग्रह।
(6) पूर्व छात्रों का फेसबुक/ व्हाट्सअप/ वेब पेज तैयार कर करें।

अभिभावक-
(1) दो श्रेणी- वर्तमान एवं पूर्व अभिभावकों को सूचीबद्ध करना।
(2) नियमित सम्पर्क- न्यूनतम वर्ष में 3 बार उनके घर जाने का अवसर एवं 3 गोष्ठी विद्यालय में हो इसकी योजना करें।
(3) विद्यालय की गतिविधियों बालक के जन्म दिन पर, रंगमंचीय, खेल, बौद्धिक, विभिन्न उत्सव, पर्व, शैक्षिक, सामाजिक सरोकार, चिकित्सा, प्रशासनिक, राजनैतिक, आर्थिक सहयोग से अभिभावकों को जोड़ें।
(4) वैचारिक रूप में प्रबंध समिति सदस्य के रूप में जोड़ना, (अभिभावक प्रतिनिधि के रूप में)।
(5) महिला अभिभावकों को बालिका शिक्षा, मातृभारती, कन्या भारती, रंगमंचीय, संगीत आदि में सहयोग हेतु जोड़ने का प्रयास।
(6) वे असंतुष्ट पालक जो हमारे हितैषी हैं उन्हें भी सूचीबद्ध कर सम्पर्क के माध्यम से अपने अनुरुप बनाकर विद्यालय का सहयोगी बनाना।
(7) प्रवेश के समय एक पुस्तक अभिभावक को देना जिससे वह हमारी वैचारिक प्रतिबद्धता व कार्यपद्यति से अवगत हो सके।
(8) मा बेटी सम्मेलन, मातृ संगोष्ठी, अभिभावक सम्मेलन के अवसर पर अभिभावकों की प्रतियोगिताऐं आयोजित करे।
(9) अभिभावक एवं सामाजिक कार्यकर्ता को अपना जन्मदिवस भारतीय तिथियों के अनुसार मनाने का आग्रह करना।


पूर्व आचार्य-
(1) पूर्व आचार्यों की सूची (सकारात्मक पक्ष के पूर्व आचार्य) बनायें।
(2) पूर्व आचार्य समिति या मंडल गठन एवं कार्य विभाजन
(3) विद्यालय स्तर से जिला, विभाग एवं प्रान्त स्तर पर संयोजक
(4) विद्यालय की गतिविधियों- शैक्षिक, खेल, उत्सव, पर्व, आर्थिक, प्रशासनिक सहयोग लेना।
(5) पूर्व आचार्य को अपने आसपास के शैक्षिक परिदृश्य, सामाजिक सरोकार, ग्रामीण विद्यालयों से जोड़ते हुये उन्हें अपना सहयोगी बनाना।
(6) प्रबंध समिति, विषय परिषदों से जोड़ना।
(7) सोशल मीडिया से जोड़ना।

कार्यालय/वित्त प्रबंधन

 कार्यालय/वित्त प्रबंधन

- एक हजार से अधिक छात्र संख्या पर एक लेखापाल, एक सहायक लेखापाल, 2 लिपिक एवं 1 कम्प्यूटर आपरेटर होना चाहिए।
- केश काउण्टर एवं भुगतानकर्ता व्यवस्था अलग-अलग होनी चाहिए।
- कार्यालयीन कार्यकर्ताओं में कार्य विभाजन होना चाहिए।
- शुल्क संग्रह/ शुल्क संधारणकर्ता अलग-अलग हो।
- अभिभावकों को बैठने हेतु व्यवस्थित बैठक व्यवस्था, जलपान की व्यवस्था /पत्र पत्रिकाऐं हो।
- विद्यालय की विभिन्न जानकारियाँ स्वागत कक्ष की दीवार पर लगी हो। सूचना पटल हो।
- प्रवेश आवेदन पत्रों की इकाईवार नस्ती, प्रवेश पंजी एवं स्कालर रजिस्टर बनवाना। दस्तावेजों की जानकारी के आधार पर प्रमाणिकता की जांच।
- प्राधिकृत व्यक्ति/अधिकारी (प्राचार्य) के हस्ताक्षर उक्त पंजियों पर हों। स्थानांतरण नस्ती पंजी का संधारण लिपिक करे कक्षा आचार्य नही।
- समस्त अभिलेखों का संरक्षण करना एवं सूचना प्राप्ति। सत्रानुसार रख रखाव की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
- विभिन्न नस्तियों एवं पंजियों की सूची बनाकर क्रमानुसार व्यवस्थित रखना।
- सभी नस्तियों की एक नस्ती एवं सभी पंजियों की एक पंजी रखना।
- आचार्य अभिलेख , छात्र अभिलेख, भूमि-भवन, रजिस्ट्रार फर्म्स एवं सोसायटी, शासकीय अभिलेख, प्रतिष्ठान अभिलेख, मान्यता अभिलेख, समिति अभिलेख यथा- सदस्यता पंजी, सदस्यता शुल्क पंजी, साधारण सभा बैठक सूचना पंजी, कार्यवाही पंजी, प्रबंध कार्यकारिणी की सूचना एवं बैठक पंजी, दान-अनुदान और अन्य निधियों के दस्तावेज, सावधि जमा के दस्तावेज, वेतन संधारण पंजी।
- पावती पुस्तिकाओं को पंजी में अंकित कर वितरण स्वीकृति, प्रमाणित स्वीकृति, विभिन्न लेखा पुस्तिका, दैनिक, मासिक शुल्क, पंजी, रोकड़ खाता, व्हाउचर का दैनिक संधारण।
- भुगतान के पूर्व स्वीकृति एवं भुगतान कर व्हाउचर पर निरस्त की सील लगकर ही नस्तिबद्ध करना। मासिक तलपट बनाना।
- महत्वपूर्ण सामग्री क्रय करने हेतु विक्रेता प्रबंधन ओर क्रय विक्रय की स्वीकृति -निविदा सहित।
- बजट एवं अनुपूरक बजट तैयार कर स्वीकृति लेकर वर्ष भर होने वाले व्यय बजट के अनुरूप हों।
- आवश्यकतानुसार पूरक बजट का प्रावधान प्रबंध समिति बैठक में करे बाद में साधारण सभा से अनुमोदन लें।
- स्थाई एवं अस्थाई वस्तु संग्रह का संधारण, बिल व्हाउचर को रोकड़ पर चढ़ाकर प्रतिपुष्टि हो। वार्षिक भौतिक सत्यापन। राईट आफ करना। यह व्यवस्था बनाना।
- महत्वपूर्ण सामग्रियों व बड़े उपकरणों (स्थाई सामग्रियों) का ह्ास /घसारा का उल्लेख करना।
- बाह्य एवं आंतरिक आडिट की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
- पत्राचार का आवक जावक पंजी पर संधारण।
- नियुक्ति/विमुक्ति का संधारण।
- टेली एकाउंट कर प्रतिदिन प्रिंट आऊट निकालकर नस्तिबद्ध करना चाहिए, उस पर प्राचार्य सचिव के हस्ताक्षर हों।
- लेखा का समस्त कार्य टेली का उपयोग एवं अन्य कार्य (कार्यालय के) करने हेतु साफ्टवेयर विकसित कर उपयोग करना।

परिसर रखरखाव

 परिसर रखरखाव 

- प्रवेश द्वार आकर्षक हो एवं शिशु मंदिर योजना के अनुरुप हो। द्वार पर ‘‘विद्याभारती’’ सरस्वती शिशु मंदिर .... लिखा हो।
- प्रवेश द्वार से पर्यावरण की सुन्दरता दिखाई दे, बेल लताएँ आदि से सुसज्जित परिसर हो।
- ‘‘ज्ञानार्थ आइये सेवार्थ जाइए’’ का बोर्ड लगा हो।
- विद्याभारती का मोनो बना हो।
- परिसर में विद्या भारती का लक्ष्य लिखा हो।
- पुण्यभूमि भारत का मानचित्र लगा हो।
- जीवन मूल्यों का चार्ट लगा हो।
- बोधवाक्य पट्टिकाएँ लगी होना चाहिए।
- बाउन्ड्री वाल बनी हो।
- प्रहरी की व्यवस्था हो।
- अभिभावक, भैया बहनों, आचार्यों के लिए स्तर एवं आवश्यकतानुसार प्रसाधन एवं पेयजल व्यवस्था की जावे।
- सुसज्जित देवालय हो। सरस्वती माता की मूर्ति लगी हो।
- मार्ग व्यवस्थित हो, पक्का बना हो।
- दिव्यांगों के लिए रेम्प की व्यवस्था।
- अभिभावक - स्वागतकक्ष आकर्षक हो।
- सांस्कृतिक प्रतीक चिन्ह भवन, दीवारों पर लगे होना चाहिए।
- वंदना कक्ष आकर्षक हो महापुरूषों के चित्र हो ।
- पेयजल संसाधन/प्रसाधन की नियमित सफाई की व्यवस्था करें।
- कार्यालय कक्ष, व्यवस्थित आचार्य कक्ष एवं भंडारकक्ष पृथक हो।
- वाहन स्टेंण्ड व्यवस्थित हो।
- सुरक्षा हेतु अग्निशमन यंत्र व सीसीटीवी केमरे लगे हो।
- यू.पी.एस. (वैकल्पिक ऊर्जा प्रबंधन) की व्यवस्था।
- जैविक कचरा रासायनिक कचरे के निस्तारण की व्यवस्था।
- पानी निकासी की व्यवस्था।
- कक्षा कक्ष /परिसर में डस्टबिन रखे हों।
- सूचना पटल (Display Board) लगा हो।
- विद्यालय की उपलब्धियों का चार्ट हो जिसमें - खेल, परीक्षा, अन्य उपलब्धियों को सम्मिलित किया जायें।
- पर्याप्त विद्युत व्यवस्था, व्यवस्थित पंखे लगे हो एवं चालू हो।
- कक्षों के नाम महापुरूषों के नाम से रखे जावे।
- बागवानी एवं गमले भी व्यवस्थित हो।
- वर्षा का जल संग्रह, जल बचाव की पट्टिकाए लगी होना (पानी का उचित उपयोग करें) चाहिए।
- फर्नीचर की नियमित सफाई होना चाहिए।
- भवन की पुताई नियमित होना चाहिए।
- बड़ा एवं आकर्षक सभागार होना चाहिए।
- वाद्य यंत्रों का रखरखाव एवं वाद्य यंत्रों की उपयोगिता प्रतिदिन होना चाहिए।
- प्रयोगशाला कक्ष/बरामदों में वैज्ञानिकों की चित्रावली लगी होना चाहिए।
- भैया बहनों की सांख्यिकी का बोर्ड लगना चाहिए।
- सौर उर्जा संयंत्र व एल.ई.डी. बल्ब की व्यवस्था होना चाहिए जिससे ऊर्जा संरक्षण का संदेश मिले।
- परिसर में लगे वृक्षों का बाटनीकल नाम होना चाहिए।
- बगीचा आकर्षक हो इस हेतु पानी की व्यवस्था होना चाहिए।
- साफ सफाई की समय सारणी हो।
- व्यवस्था प्रियता दिखे इसलिए सभी वस्तुऐं उचित स्थान पर रखी हो।
- आयुर्वेद पेड़ों के उपयोग होना चाहिए इसकी सूची लगी हो।
- विश्राम पार्क की व्यवस्था।
- भैयाओं द्वारा बनायी गयी चीजों की जानकारी।
- शिकायत एवं सुझाव पेटी लगी हो। समय समय पर इसको खोलकर शिकायतों का समाधान एवं आवश्यक सुझावों पर अमल किया जावें।
- भवन का रख रखाव उचित हो व इसकी बजट में व्यवस्था हो। भवन की कुल कीमत का लगभग 3 प्रतिशत रखरखाव के लिए रखें।
- भवन की सफाई का रजिस्टर होना चाहिए एवं इसमें भैया बहिनों की सहभागिता/ होना चाहिए।
- भवन एवं संसाधनों की जानकारी का मानचित्र प्राचार्य के टेबल पर होना चाहिए।
- पेयजल की व्यवस्था उचित होना शिशुवाटिका के लिए कम ऊँचाई पर नल लगाना।
- शिशुवाटिका का लक्ष्य एवं सुन्दर शिशुवाटिका होना चाहिए।

विद्याभारती एवं शासन की अनिवार्यताऐं

 
विद्याभारती एवं शासन की अनिवार्यताऐं


(अ) शासन / समिति
(1) धारा 27, 28 की जानकारी निर्धारित समय पर पहुँचाना। (साधारण सभा होने के 45 दिन के अंदर)
(2) प्रबंध समिति की प्रमाणित सूची निर्धारित समयावधि में प्रतिवर्ष प्राप्त करना चाहिऐ।
(3) पेन नम्बर, टेन नम्बर एवं 12 A संस्था के पास हो इसका प्रयत्न प्रारम्भ करें।
(4) 80 G सभी के पास हो तो उत्तम रहेगा। यह 12 A लेने के पश्चात् ही मिलता हैं।
(5) आयकर रिटर्न प्रतिवर्ष जमा करना चाहिये।
(6) प्रतिवर्ष समिति एवं विद्यालय खाते का अंकेक्षण समय पर करवाना एवं इसे साधारण सभा में प्रस्तुत करना चाहिये।
(7) मासिक बैठक, निर्वाचन, साधारण सभा विधान के अनुसार समय पर हो। वार्षिक साधारण सभा अप्रैल-जून माह में अवश्य हो।


(ब) विद्यालय
(8) मान्यता एवं सम्बद्धता- विद्यालय की मान्यता एवं सम्बद्धता के लिए समय सीमा में कार्यवाही पूर्ण करें।
(9) माध्यमिक शिक्षा मण्डल- नामांकन प्रक्रिया, प्रवेश सूची, परीक्षा फार्म की कार्यवाही समय पर पूर्ण हो।
(10) विद्यालय अभिलेख शासन के दिशा निर्देश अनुसार तैयार हो।
(11) छात्रों की मेंपिंग, फीडिंग, छात्रवृत्ति आदि की कार्यवाही समय-सीमा में पूर्ण करें।
(12) छात्र बीमा, आचार्य-कर्मचारी बीमा, (ESIC. राज्य कर्मचारी बीमा हो। छात्र बीमा 1 सितम्बर तक जो जाए)
(13) P.F. (भविष्य निधि) समस्त कर्मचारियों की नियमानुसार लागू की जाए। प्रतिमाह की 10 तारीख के पूर्व राशि जमा करें।
(14) ग्रेच्यूटी - समस्त कर्मचारियों के लिए ग्रेच्यूटी योजना लागू हो श्रम अधिनियम के अनुसार हो।
(15) आचार्य कल्याण कोष रहे एवं उसका समुचित उपयोग हो।
(16) प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा (330 रु एवं 12 रु.) लागू हो।
(17) रेडक्रास, स्काउट गाईड की राशि समय-सीमा में जिला शिक्षा विभाग को भेजी जाए।
(18) शासन द्वारा किये जा रहे पत्राचार एवं मासिक जानकारी समय-सीमा में भेजी जाए।
(19) रेलवे आरक्षण बुक हो एवं उसकी मासिक जानकारी संबंधित विभाग को भेजना सुनिश्चित करें।
(20) वाहन से संबंधित सभी कार्यवाहियाँ समय पर पूर्ण करना चाहिये।


(स) प्रतिष्ठान-
(1) देयांश, संख्या, अपेक्षित वृत्त समय पर भेजना सुनिश्चित करें।
(2) आवश्यक प्रपत्र समय-सीमा में पूर्ण कर भेजे जाए।
(3) आचार्य सुरक्षा न्यास में सभी नियमित आचार्य सदस्य हों (30 जुलाई तक नियमितिकरण कर सदस्यता आवेदन भेजना है)
(4) वर्ग, प्रशिक्षण एवं अन्य विषयों के आग्रह को पूर्ण करें एवं इनमें अपेक्षित व्यक्तियों को ही भेजा जाए।
(5) आचार्य की नियुक्ति एवं विमुक्ति प्रक्रिया प्रतिष्ठान की सेवा संहिता /दिशा निर्देशों के अनुसार ही करें।

विद्यालय का संस्कार पक्ष

 
विद्यालय का संस्कार पक्ष

(1) प्रान्त द्वारा निर्धारित गणवेश का पालन हो- (भैया/बहिन एवं आचार्य/दीदी के लिये)
- गणवेश से समझौता नहीं करना चाहिए।
- बहिनों की दो चोटी होना चाहिए।
- गणवेश फैशन के लिये नहीं होना चाहिए, अपितु इसके लिये मन में गौरव का भाव हो।
(2) प्रबंध समिति सदस्यों का विद्यालय समय या समिति बैठक/ कार्यक्रम में शुभ्रवेश का आग्रह।
(3) समय पालन का कठोरता से पालन हो। (बैठक या कार्यक्रम के प्रारम्भ में) यह हमारी कार्यपद्धति है।
(4) विद्यालयीन कार्यक्रम में मंच पर प्रधानाचार्य एवं समिति का एक पदाधिकारी बैठे।
(5) प्रधानाचार्य/आचार्य/समिति कार्यकर्ता व्यसन न करें इसका भी कठोरता से पालन करें।
(6) विद्यालय समय में सभी के मोबाइल स्विच पूर्णतः प्रतिबंधित हों। प्राचार्य का मूक रहे। इसकी ठीक व्यवस्था क्या हो सकती हैं, विचार करें।
(7) कभी भी किसी अन्य कार्य के लिए विद्यालय का शैक्षणिक कार्य प्रभावित नहीं करना चाहिए।
(8) प्रधानाचार्य का आचार्य के प्रति एवं आचार्य का भैया/बहिनों के प्रति समानता का भाव हो। हम सबके विकास के प्रति जवाबदेह हैं।
(9) प्राचार्य/पारी प्रभारी/पी.आर.ओ./काउन्सलर, भैया/बहिनों को समझने का प्रयास करें। इसलिये उनका आपसी परिचय हो। इसके अवसर खोजना चाहिये।

वन्दना एवं बालसभा

 
वन्दना का स्वरुप (अधिकतम समय सीमा - एक कालांश 30 -35 मिनट)
1.  समय की निश्चता होनी चाहिए।
2. वन्दना में संगीत वाद्ययंत्रो का उपयोग होना चाहिए।
3. वन्दना सस्वर उच्चारण अर्थ एवं भावार्थ किन्ही दो श्लोकों का प्रतिदिन ।
4. वन्दना समय में भैया/बहिनो/आचार्यो के जन्म दिन का आयोजन।
5. महापुरुषों की जयंती/पुण्यतिथि के दिन सभाकक्ष के चित्र पर माल्यार्पण एवं संक्षिप्त जीवन परिचय को भी शामिल करना चाहिए।
6. हर दिन पावन पुस्तक के आधार पर संस्मरण बताना चाहिए।
7. सप्ताह में एक दिन किसी संत, महात्मा का प्रवचन या स्वास्थ्य संबंधी चर्चा किसी चिकित्सक निश्चत विषय पर होना चािहए।
8. प्रार्थना समय में मासिक गीत, भजन का अभ्यास होना चाहिए ।
9. गणवेश पालन, बिलम्ब से आने वालों छात्रों की अलग से पक्ति बताना।
10. नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमंत्रित करके दीप प्रज्जवलन /अध्यक्षता कराना चाहिए ।
11. ऐसे भैया/बहिन जा संगीत की जानकारी रखते है। उनके दल से प्रार्थना, गीत, भजन का अभ्यास करवाना चाहिए।
12. दैनिक समाचार हिन्दी/अंग्रेजी के बोलना।
13. वंदना के कालांश में विज्ञान/सा.विज्ञान/गणित के प्रयोगों का प्रदर्शन होना चाहिए।
14. वन्दना की एस.ओ.पी. बनाकर वन्दना प्रमुख एवं प्राचार्य के पास होना चाहिए।

बालसभा:- 
1. बालसभा प्रथम शनिवार को एक विषय दूसरे शनिवार विभागशः, तृतीय शनिवार पूरे विद्यालय की होना चाहिए।
2. बालसभा में समाज के प्रतिष्ठत व्यक्तियों को बुलाना चाहिए।
3. बालसभा में स्वपोषी पूर्व छात्रों को सम्मिलित करना चाहिए।
4. बालसभा का उद्देश्य बहुआयामी हो, जिससे छात्र का समग्र विकास हो।
5. बालसभा में समस्त छात्रों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए ध्यान देना चाहिए।

 

ग्रहकार्य - नियोजन  

1. ग्रहकार्य शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी एवं टिकाऊ बनाने के लिये आवश्यक कार्य हे।
2. जिज्ञासा एवं प्रति उत्तर व्यवहार का समाधान इसमें निहित है। वर्तमान में कक्षाचार्य एवं सामान्य अध्यन कार्य को  ही ग्रहकार्य के रुप में स्वीकार कर लिया गया है जो सर्वथा अनुचित है।
3. ग्रहकार्य को वास्तविक रुप में स्वीकार्य किया जाना चाहिए ।
4. अरुण एवं उदय कक्षा में ग्रहकार्य कदापि नहीं दिया जाना चाहिए।
5. कक्षा 1-5 वी तक बौद्धिक स्तर के ग्रहकार्य से बचाना चाहिए और प्रतिदिन एक घंटे से अधिक का ग्रहकार्य नहीं  दिया जाना चाहिए।
6. एक विषय में 25 से 30 मिनट का ही ग्रहकार्य दिया जाना चाहिए।
7. ग्रहकार्य मौखिक लिखित एवं प्रत्यास्मरण तीनो प्रकार का दिया जाना चाहिए।
8. कक्षा 9-12 वी तक 3 घंटे से अधिक का ग्रहकार्य नहीं दिया जाना चाहिए।
9. विषयाचार्य के द्वारा दिये गये ग्रहकार्य की नियमित जाँच होनी चाहिए और अवलोकन कर दिनांक सहित हस्ताक्षर  करने चाहिए।
10. आवश्यक सुधार हेतु सुस्पष्ट दिशा निर्देश एवं टिप्पणी स्पष्ट रुप से अंकित की जानी चाहिए।
11. ग्रहकार्य देने एवं निरीक्षण की सुनियोजित योजना बनाई जाए और इसे पाठयोजना में शामिल किया जाए ।
 

सरस्वती शिशु मंदिर की रीती नीति

 

सा विद्या या विमुक्तये

 
 

परमेष्टिगत विकास

 

पञ्चकोष की अवधारणा

 
 
 

पांच आधारभूत विषय

 

ज्ञानार्जन के करण

 
 

आचार्य विद्यालय प्रवंधन में