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ग्रहकार्य - नियोजन
ग्रहकार्य - नियोजन
1. ग्रहकार्य शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी एवं टिकाऊ बनाने के लिये आवश्यक कार्य हे।
2. जिज्ञासा एवं प्रति उत्तर व्यवहार का समाधान इसमें निहित है। वर्तमान में कक्षाचार्य एवं सामान्य अध्यन कार्य को ही ग्रहकार्य के रुप में स्वीकार कर लिया गया है जो सर्वथा अनुचित है।
3. ग्रहकार्य को वास्तविक रुप में स्वीकार्य किया जाना चाहिए ।
4. अरुण एवं उदय कक्षा में ग्रहकार्य कदापि नहीं दिया जाना चाहिए।
5. कक्षा 1-5 वी तक बौद्धिक स्तर के ग्रहकार्य से बचाना चाहिए और प्रतिदिन एक घंटे से अधिक का ग्रहकार्य नहीं दिया जाना चाहिए।
6. एक विषय में 25 से 30 मिनट का ही ग्रहकार्य दिया जाना चाहिए।
7. ग्रहकार्य मौखिक लिखित एवं प्रत्यास्मरण तीनो प्रकार का दिया जाना चाहिए।
8. कक्षा 9-12 वी तक 3 घंटे से अधिक का ग्रहकार्य नहीं दिया जाना चाहिए।
9. विषयाचार्य के द्वारा दिये गये ग्रहकार्य की नियमित जाँच होनी चाहिए और अवलोकन कर दिनांक सहित हस्ताक्षर करने चाहिए।
10. आवश्यक सुधार हेतु सुस्पष्ट दिशा निर्देश एवं टिप्पणी स्पष्ट रुप से अंकित की जानी चाहिए।
11. ग्रहकार्य देने एवं निरीक्षण की सुनियोजित योजना बनाई जाए और इसे पाठयोजना में शामिल किया जाए ।