मानवीय संसाधन का विकास

मानवीय संसाधन का विकास

 
मानवीय संसाधन का विकास
(अभिभावक, पूर्व छात्र एवं पूर्व आचार्य)

पूर्व छात्र -
विद्यालय में 3 श्रेणियों में (1) अध्ययनरत (2) स्वपोषी (3) अप्रवासी (विदेशस्थ) पूर्व छात्र को पंजीकृत किया जावें।
(1) पूर्व छात्रों की परिषद् का विधान अनुसार गठन एवं कार्य विभाजन।
(2) मासिक बैठक या पाक्षिक बैठक।
(3) वृहत्त सम्मेलन वर्ष में एक बार अवश्य हो। श्रेणीशः/सत्रशः सूचना की व्यवस्था करें ।
(4) विद्याभारती के कार्य विस्तार हेतु सहयोग लेना-
खेलकूद प्रशिक्षक, निर्णायक, समिति सदस्य, अतिथि, शिक्षण हेतु, प्रबोधन, कैरियर गाईडेंस, सामाजिक कार्य में सेवा कार्य में सहयोगी, प्रवक्ता के रुप में, विभिन्न गतिविधियों/ विधाओं के प्रमुख के रुप में, आर्थिक सहयोग हेतु , उत्सव,पर्व में, वैचारिक संगठन के पोषण में सहयोग।
(5) प्रबोधन की दृष्टि से पूर्व छात्रों की शैक्षिक गोष्ठी की नियमितता का आग्रह।
(6) पूर्व छात्रों का फेसबुक/ व्हाट्सअप/ वेब पेज तैयार कर करें।

अभिभावक-
(1) दो श्रेणी- वर्तमान एवं पूर्व अभिभावकों को सूचीबद्ध करना।
(2) नियमित सम्पर्क- न्यूनतम वर्ष में 3 बार उनके घर जाने का अवसर एवं 3 गोष्ठी विद्यालय में हो इसकी योजना करें।
(3) विद्यालय की गतिविधियों बालक के जन्म दिन पर, रंगमंचीय, खेल, बौद्धिक, विभिन्न उत्सव, पर्व, शैक्षिक, सामाजिक सरोकार, चिकित्सा, प्रशासनिक, राजनैतिक, आर्थिक सहयोग से अभिभावकों को जोड़ें।
(4) वैचारिक रूप में प्रबंध समिति सदस्य के रूप में जोड़ना, (अभिभावक प्रतिनिधि के रूप में)।
(5) महिला अभिभावकों को बालिका शिक्षा, मातृभारती, कन्या भारती, रंगमंचीय, संगीत आदि में सहयोग हेतु जोड़ने का प्रयास।
(6) वे असंतुष्ट पालक जो हमारे हितैषी हैं उन्हें भी सूचीबद्ध कर सम्पर्क के माध्यम से अपने अनुरुप बनाकर विद्यालय का सहयोगी बनाना।
(7) प्रवेश के समय एक पुस्तक अभिभावक को देना जिससे वह हमारी वैचारिक प्रतिबद्धता व कार्यपद्यति से अवगत हो सके।
(8) मा बेटी सम्मेलन, मातृ संगोष्ठी, अभिभावक सम्मेलन के अवसर पर अभिभावकों की प्रतियोगिताऐं आयोजित करे।
(9) अभिभावक एवं सामाजिक कार्यकर्ता को अपना जन्मदिवस भारतीय तिथियों के अनुसार मनाने का आग्रह करना।


पूर्व आचार्य-
(1) पूर्व आचार्यों की सूची (सकारात्मक पक्ष के पूर्व आचार्य) बनायें।
(2) पूर्व आचार्य समिति या मंडल गठन एवं कार्य विभाजन
(3) विद्यालय स्तर से जिला, विभाग एवं प्रान्त स्तर पर संयोजक
(4) विद्यालय की गतिविधियों- शैक्षिक, खेल, उत्सव, पर्व, आर्थिक, प्रशासनिक सहयोग लेना।
(5) पूर्व आचार्य को अपने आसपास के शैक्षिक परिदृश्य, सामाजिक सरोकार, ग्रामीण विद्यालयों से जोड़ते हुये उन्हें अपना सहयोगी बनाना।
(6) प्रबंध समिति, विषय परिषदों से जोड़ना।
(7) सोशल मीडिया से जोड़ना।