पांच आधारभूत विषय
शारीरिक शिक्षा
बालक बलवान बने, बलिष्ठ बने, अच्छा खिलाड़ी बने, उसकी शारीरिक क्षमताओं का विकास हो, ऐसा बालक ही देश और धर्म की रक्षा कर सकेगा. विद्या भारती के सभी विद्यालयों में सभी बालक शारीरिक दृष्टि से विकास करें, यह प्रयास एवं व्यवस्था की जाती है. इसी दृष्टि से कक्षानुसार शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम विशेषज्ञों ने बनाया है. शारीरिक शिक्षा का विशेष प्रशिक्षण देने के लिए क्षेत्रशः केंद्र स्थापित किये गए हैं. विद्या भारती राष्ट्रीय खेल-कूद परिषद् का गठन किया जा रहा है.
योग शिक्षा
योग विद्या भारती की प्राचीन विद्या है. विश्व भर में इसको अपनाया जा रहा है. विद्या भारती का प्रयत्न है कि हमारे सभी बालक-बालिकाएं योगाभ्यासी बनें. योग के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास उत्तम रीति से होता है - यह विज्ञान से एवं अनुभव से सिद्ध है. प्रत्येक प्रदेश एवं क्षेत्र में योग शिक्षा केंद्र स्थापित किये हैं. जहाँ प्रयोग एवं आचार्य प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलते हैं. एक राष्ट्रीय स्तर पर भी योग शिक्षा संस्थान स्थापित करने की योजना विचाराधीन है.
संस्कृत भाषा
संस्कृत भाषा की ही नहीं विश्व कि अधिकांश भाषाओँ की जननी है. संस्कृत साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की निधि भरी पड़ी है. संस्कृत भाषा के ज्ञान के बिना उससे हमारे छात्र अपरिचित रहेंगे. संस्कृत भारत की राष्ट्रीय एकता का सूत्र भी है. विद्या भारती ने इसी कारण संस्कृत भाषा के शिक्षण को अपने विद्यालय में महत्वपूर्ण स्थान दिया है. विद्या भारती संस्कृत विभाग कुरुक्षेत्र में स्थित है. इस विभाग ने सम्भाषण पद्धति के आधार पर "देववाणी संस्कृतम" नाम से पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है. संस्कृत के आचार्यों का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी इस विभाग के द्वारा संचालित होता है.
संगीत शिक्षण
संगीत वह कला है जो प्राणी के हृदय के अंतरतम तारों को झंकृत कर देती है. उदात्त भावनाओं के जागरण एवं संस्कार प्रक्रिया के माध्यम के रूप में संगीत का शिक्षण विद्या भारती के सभी विद्यालयों में सारे देश में चलता है. उच्च स्तर के गीत कैसेट तैयार कराए गए हैं. राष्ट्र भक्ति के गीतों का स्वर पूरे भारत में गूंजता है. जन्मदिवस के उत्सव हेतु गीत-कैसेट तैयार कराया है जो घर-घर में बजता है. संगीत शिक्षण का कक्षानुसार पाठ्यक्रम निर्धारित है. सभी भारतीय भाषाओँ में गीत छात्रों में प्रचलित हैं. भाषायें भिन्न हैं किन्तु भाव एक हैं. यह अनुभूति होती है
नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा
बालक देश के भावी कर्णधार हैं. उनके चरित्र बल पर ही देश कि प्रतिष्ठा एवं विकास आधारित है. अतः नैतिकता, राष्ट्रभक्ति आदि मूल्यों की शिक्षा और जीवन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करने हेतु विद्या भारती ने यह पाठ्यक्रम बनाया है. यह समस्त शिक्षा प्रक्रिया का आधार विषय है. भारतीय संस्कृति, धर्म एवं जीवनादर्शों के अनुरूप बालकों के चरित्र का निर्माण करना विद्या भारती की शिक्षा प्रणाली का मुख्य लक्ष्य है
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विद्या भारती संस्कृति बोध परियोजना
इसके अंतर्गत तीन कार्यक्रम संचालित होते हैं.-
१. अखिल भारतीय संस्कृत ज्ञान परीक्षा यह परीक्षा 1980 से विद्या भारती के कुरुक्षेत्र केंद्र से संचालित की जाती है. इसके माध्यम से छात्रों को भारतीय संस्कृति, धर्म, इतिहास, पर्वों, तीर्थस्थलों, पवित्र नदियों-पर्वतों एवं राष्ट्रीय महापुरुषों की जानकारी अत्यंत रोचक एवं सहज रूप में प्राप्त हो जाती है. इस योजना का लाभ विद्या भारती के अतिरिक्त अन्य विद्यालयों के छात्र, अध्यापक, माता-पिता आदि सर्वसाधारण लोग प्राप्त कर रहे हैं. भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय एकता को पुष्पित एवं पल्लवित करने में यह योजना पोषक सिद्ध हो रही है. इस वर्ष 2012 में अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में ....................... लाख से अधिक छात्र सम्मिलित हुए हैं. यह संख्या प्रति वर्ष बढ़ रही है. २. संस्कृत ज्ञान परीक्षा (आचार्यों के लिए) आचार्यों हेतु भी संस्कृति ज्ञान परीक्षा प्रवेशिका, मध्यमा, उत्तमा एवं प्रज्ञा इन चार स्तरों पर आयोजित के जाती है जिससे कि आचार्यों को भी उपर्युक्त विषयों का ज्ञान हो सके. सामान्यतया प्रचलित शिक्षा प्रणाली से निकले हुए युवक अपने धर्म, संस्कृति, इतिहास आदि विषयों के सामान्य ज्ञान में भी शून्य होते हैं. उनके विकास में यह योजना प्रभावी सिद्ध हो रही है. ३. प्रश्न मंच कार्यक्रम प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर के अलग-अलग समूहों के लिए प्रश्न मंच कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर तक आयोजित किया जाता है. यह अत्यंत रोचक कार्यक्रम होता है, जिसके माध्यम से छात्र अपनी पुण्य भूमि भारत, इतिहास एवं सांस्कृतिक विषयों का परिचय सहज रूप से प्राप्त कर लेते हैं. ४. निबंध प्रतियोगिता यह कार्यक्रम अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया जाता है. इसका आयोजन प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च स्तर माध्यमिक स्तर के छात्रों एवं आचार्यों के लिए अलग-अलग होता है. अपने-अपने समूह में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कार दिए जाते ह ैं. निबंध के विषय भी पुण्य भूमि भारत, इतिहास, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र के महापुरुष एवं भारतीय संस्कृति से सम्बंधित होते हैं.
संस्कृति बोध परियोजनाविश्व में प्रत्येक देश अपनी संस्कृति, परम्पराओं, जीवन मूल्यों, ज्ञान-विज्ञान एवं महापुरुषों के अनुभवों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में भावी पीढ़ी को शिक्षा के माध्यम से सौंपने का प्रयास करता है। भारत की महान् आध्यात्मिक संस्कृति, श्रेष्ठ परम्पराएं, जीवन मूल्य, महापुरुषों के आदर्श जीवन-चरित्र तथा यहाँ का ज्ञान-विज्ञान इस देश की ही नहीं, विश्व की अमूल्य-निधि माने जाते हैं। परन्तु वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति द्वारा अपनी इस अप्रतिम राष्ट्रीय निधि को भावी पीढ़ी को सौंपना तो दूर रहा, उससे परिचित कराने का कार्य भी नहीं हो पा रहा है। परिणामतः राष्ट्रीय स्वाभिमान-शून्यता एवं विदेशी संस्कृति के अन्धानुकरण की प्रवृत्ति छात्रों में बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। हमारी यह दृढ़ मान्यता है कि यदि हमारे छात्रों को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के साथ अपनी महान उज्ज्वल संस्कृति, गौरवपूर्ण इतिहास, महापुरुषों के जीवन-चरित्र, श्रेष्ठ राष्ट्रीय परम्पराओं का परिचय कराया जाए तो आज के निराशापूर्ण वातावरण में भी आशा की किरण उत्पन्न होकर विद्यार्थी जगत में अपेक्षित परिवर्तन दिखाई देगा। इस निमित्त विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के द्वारा संचालित मुख्य गतिविधियाँ अग्रलिखित हैं: - 1. संस्कृति बोध परियोजनाo संस्कृति ज्ञान परीक्षा o संस्कृति ज्ञान प्रश्नमंच o निबन्ध लेखन प्रतियोगिता (छात्रों की) o निबन्ध लेखन प्रतियोगिता (आचार्यों की o आचार्य संस्कृति ज्ञान परीक्षा(प्रवेशिका, मध्यमा, उत्तमा) o अखिल भारतीय प्रज्ञा परीक्षा 2. चित्र व साहित्य प्रकाशन एवं शैक्षिक सी.डी. आदि का निर्माण।3. ज्ञान-विज्ञान मेला
विज्ञान प्रदर्शनी, प्रश्न मंच तथा विषय प्रस्तुति (पत्र वाचन) संस्कृति ज्ञान, प्रश्नमंच, विषय प्रस्तुति, वैदिक गणित प्रश्नमंच, पत्र वाचन आदि।
4. विचार गोष्ठियों एवं शोध गोष्ठियों का आयोजन।
5. संगीत केन्द्र, संगीत आचार्य प्रशिक्षण एवं कला पर्व का आयोजन।
6. संवेदनशील एवं उपेक्षित क्षेत्रों में शिक्षा प्रसार के लिए आर्थिक सहायता करना।
7. लेह(लद्दाख) संस्कृति केंद्र का संचालन
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अखिल भारतीय खेलकूद समारोह
विद्या भारती ने प.पू. डॉ. हेडगेवार के जन्म शताब्दी वर्ष 1988-89 से अखिल भारतीय खेलकूद समारोह का आयोजन प्रारम्भ किया है. इस समारोह में बाल, किशोर, तरुण अर्थात कक्षा अष्टम तक, कक्षा दशम तक, कक्षा द्वादश तक के छात्र-छात्राएँ अलग-अलग समूहों में भाग लेते हैं. कबड्डी, खो-खो, कुश्ती, जूडो,वालीबाल आदि खेलकूद (एथलेटिक्स) के विषय रहते हैं. प्रत्येक खिलाड़ी अधिक से अधिक तीन खेलों में भाग ले सकता है. यह खेलकूद कार्यक्रम विद्यालय स्तर से प्रारम्भ होकर जिला, संभाग, प्रदेश, क्षेत्र एवं अंत में अखिल भारतीय स्तर तक संपन्न होता है. क्षेत्र में विभिन्न खेलों में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले खिलाड़ी छात्र-छात्राएँ ही अखिल भारतीय स्तर पर भाग ले सकते हैं. इस खेलकूद समारोह में प्रतिभागी छात्र-छात्राएँ विश्व रिकॉर्ड के बराबरी करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. यह विद्या भारती एवं देश के लिए गौरव की बात है. हमारे युवक बलवान हों. युवक-युवतियां बलवान होंगे तो भारत बलवान होगा. बल के साथ संस्कार भी हों - बिना संस्कार के बलशाली विवेकहीन हो जाता है. समाज को उसका लाभ नहीं मिल पाता. संस्कारित बलवान युवक ही राष्ट्र की रक्षा कर सकता है. विद्या भारती इसी ध्येय वाक्य को लेकर खेलकूद समारोह आयोजित करती है. इस खेलकूद समारोह का सबसे आकर्षण एवं प्रभावी स्वरुप यह होता है कि इसमें लघु भारत के दर्शन होते हैं. राष्ट्रीय एकात्मकता का सहजभाव सभी के मन मैं हिलोरे लेने लगता है. एस.जी.एफ़.आई. ने इसे मान्यता प्रदान की है.
वर्ष २०१४-१५ में ७० पदक प्राप्त कर विद्या भारती ने SGFI की अंक तालिका में २७ वा स्थान प्राप्त किया.
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शिशु वाटिका (पूर्व प्राथमिक शिक्षा)
भारत में सामान्यता प्राथमिक विद्यालयों में ६ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर बालक कक्षा प्रथम में प्रवेश लेकर अपने औपचारिक शिक्षा आरम्भ करता है. 3 वर्ष से 6 वर्ष का उसका समय प्रायः परिवार में ही व्यतीत होता है. प्राचीन काल में भारत में जब परिवार संस्था सांस्कृतिक दृष्टि से सशक्त थी उस समय बालक परिवार के स्नेहपूर्ण वातावरण में रहकर योग्य संस्कार ग्रहण कर विकास करता था. माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका होती थी. किन्तु आधुनिक काल में औद्योगिक विकास एवं पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव विशेष रूप से नगरों में, परिवारों पर भी हुआ और इसके परिणामस्वरूप 2 वर्ष का होते ही बालक को स्कूल भेजने की आवश्यकता अनुभव होने लगी. नगरों में इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए "मोंटेसरी", "किंडरगार्टन" या नर्सरी स्कूलों के नाम पर विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी. नगरों एवं महानगरों के गली-गली में ये विद्यालय खुल गए और संचालकों के लिए व्यवसाय के रूप में अच्छे धनार्जन करने के साधन बन गए.
मोंटेसरी या किंडरगार्टन के नाम पर चलने वाले इन विद्यालयों में कोमल शिशुओं पर शिक्षा की दृष्टि से घोर अत्याचार होता है. भारी-भारी बस्तों के बोझ ने इनके बचपन को उनसे छीन लिया. अंग्रेजी माध्यम के नाम पर पश्चिमीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है. देश के लिए घातक इस परिस्थिति को देखकर विद्या भारती ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा की ओर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया. भारतीय संस्कृति एवं स्वदेशी परिवेश के अनुरूप शिशु शिक्षा पद्धति "शिशु वाटिका" का विकास किया.
शिशु का शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास की अनौपचारिक शिक्षा पद्धति "शिशु वाटिका" के नाम से प्रचलित हुई. अक्षर ज्ञान और अंक ज्ञान के लिए पुस्तकों और कापियों के बोझ से शिशु को मुक्ति प्रदान की गयी.
खेल, गीत, कथा कथन, इन्द्रिय विकास, भाषा-कौशल, विज्ञान अनुभव,रचनात्मक-कार्य, मुक्त व्यवसाय, चित्रकला-हस्तकला, दैनन्दिन जीवन व्यवहार आदि के अनौपचारिक कार्यकलापों के माध्यम से "शिशु वाटिका" कक्षाएँ शिशुओं की आनंद भरी किलकारियों से गूंजती हैं और शिशु सहज भाव से शिक्षा और संस्कार प्राप्त कर विकास करते हैं.
विद्या भारती ने शिशुओं के साथ उनके माता-पिता एवं परिवारों को भी प्रशिक्षित एवं संस्कारित करने का कार्यक्रम "शिशु वाटिका" के अंतर्गत अपनाया है. शिशु के समुचित विकास में परिवार विशेष रूप से माता का दायित्व है. इस दायित्व बोध का जागरण एवं हिंदुत्व के संस्कारों से युक्त घाट का वातावरण निर्माण करने का प्रयास देश भर में "शिशु वाटिका" के माध्यम से हो रहा है
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वनवासी प्रकल्प
जनजातीय छात्रावास प्रकल्प भाउराव देवरस सेवा न्यास द्वारा चार आवासीय जनजातीय छात्रावास का संचालन भी किया जा रहा है |उक्त्त छात्रावासों में जनजातीय छात्रों के आवास, भोजन एवं शिक्षा की निःशुल्क व्यस्था की गई है |
क्रमांक |
प्रकल्प का नाम |
छात्र |
छात्रा |
आचार्य |
1 |
रानी दुर्गावती बालिका छात्रावास,रायसेन |
0 |
135 |
5 |
2 |
जनजाति छात्रावास मटकुली, होशंगाबाद |
24 |
0 |
2 |
3 |
जनजाति छात्रावास कायदा, हरदा |
20 |
0 |
2 |
4 |
जनजातीय छात्रावास सिअरमऊ, जिला रायसेन |
40 |
0 |
4 |
5 |
बिरसा मुंडा छात्रावास ,ढाबा (भैसदेही) |
35 |
0 |
2 |
6 |
भारत भारती जनजातीय छात्रावास, बैतूल |
43 |
0 |
4 |
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योग |
162 |
135 |
19 |
01-रानी दुर्गावती बालिका आवासीय छात्रावास,रायसेनमध्यप्रदेश के रायसेन जिला मुख्यालय पर वनवासी बालिकाओं के लिए निशुल्क छात्रावास 1 जुलाई 2011 से प्रारम्भ किया गया है | जिसमे अभी 140 बालिकाओं की शिक्षा का प्रबंध किया गया है |छात्रावास अब पूर्ण विद्यालय के रूप में प्रारंभ हो गया है. इस छात्रावास में वनवासी क्षेत्र की बहिने अध्यनरत है. प्राचार्य के रूप में सुश्री शाम्भवी शर्मा एवं संस्थान के सचिव श्री नीलेश चतुर्वेदी बहिनों के संस्कारपक्ष पर सतत प्रयत्न करते रहते है.वर्त्तमान में १३७ बहिने अध्यनरत है. सम्पर्क - प्रबंधक - श्री नीलेश चतुर्वेदी 09406566585
02- जनजाति छात्रावास मटकुली, होशंगाबादमध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में पचमढ़ी के निकट मटकुली स्थान पर वनवासी बालकों के लिए निशुल्क छात्रावास 1 जुलाई 2012 से प्रारम्भ किया गया है | जिसमे अभी 30 बालकों के निशुल्क शिक्षा का प्रबंध किया गया है | छात्रावास पूर्ण विद्यालय के रूप में प्रारंभ है. इस छात्रावास में सचिव के रूप में श्री चाणक्य बक्शी कार्य देख रहे है. सम्पर्क - श्री चाणक्य बक्शी
03-जनजाति छात्रावास कायदा, हरदा मध्यप्रदेश के हरदा जिला में टिमरनी विकासखंड में सुदूर जंगलों में कायदा नामक स्थल पर वनवासी बालकों के लिए निशुल्क छात्रावास 1 जुलाई 2012 से प्रारम्भ किया गया है | जिसमे अभी 20 बालकों की शिक्षा का प्रबंध किया गया है | सरस्वती विद्या मंदिर, हरदा द्वारा इस छात्रावास की संपूर्ण व्यवस्था संचालित होती है. सम्पर्क - श्री सुजीत शर्मा 09926438030
04-जनजातीय छात्रावास सिअरमऊ, जिला रायसेनवनवासी ग्राम विकास पर आधारित, सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक गतिविधिओं का केंद्र है | जनजातीय छात्रावास, जैविक कृषि प्रशिक्षण, पर्यावरण संरक्षण जागरूकता अभियान, गौ मंदिर इसी श्रृंखला की एक कड़ी है छात्रावास में 40 वनवासी भैया निःशुल्क अध्यनरत् हैं , गुरुकुल शिक्षा पद्धति पर आधारित शिक्षा प्रणाली से भैयाओं का सर्वांगीर्ण विकास करने में, अच्छे नागरिक गढ़ने में उनमें स्वाभिमान जाग्रत करने में हम सब प्रयासरत् हैं| सम्पर्क - श्री नीलेश चतुर्वेदी 09406566585
05-बिरसा मुंडा छात्रावास ,ढाबा (भैसदेही)मध्यप्रदेश के बैतुल जिला में भैसदेही विकासखंड में वनवासी बालकों के लिए निशुल्क छात्रावास 1 जुलाई 2011 से प्रारम्भ किया गया है | जिसमे अभी 25 बालकों की शिक्षा का प्रबंध किया गया है | सम्पर्क - श्री मोहन नागर 09425003189
06-भारत भारती जनजातीय छात्रावास,बैतूलमोटर बाइंडिंग, बिजली फिटिंग, सिलाई, बुक बाइंडिंग, स्क्रीन प्रिंटिंग, झाड़ू निर्माण, औषधी निर्माण, कृषि बागवानी आदि का प्रशिक्षण छात्रों को दिया जाता है | छात्रावास में 40 बालकों की शिक्षा का प्रबंध किया गया है. सम्पर्क - श्री मोहन नागर 09425003189
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शैक्षिक चिंतन का अधिष्ठान -- हिन्दू जीवन दर्शन
1. भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास विद्या भारती एवं राष्ट्र भक्त शिक्षा शास्त्रियों का यह स्पष्ट मत है कि शिक्षा तभी व्यक्ति एवं राष्ट्र के जीवन के लिए उपयोगी होगी जब वह भारत के राष्ट्रीय जीवन दर्शन पर अधिष्ठित होगी जो मूलतः हिन्दू जीवन दर्शन है. अतः विद्या भारती ने हिन्दू जीवन दर्शन के अधिष्ठान पर भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास किया है. इसी के आधार पर शिक्षा के उददेश्य एवं बालक के विकास के संकल्पना निर्धारित की है. 2. शिक्षण पद्धति का आधार - भारतीय मनोविज्ञान शिक्षा पद्धति का निर्धारण मनोविज्ञान के द्वारा होता है. प्रचलित शिक्षण पद्धति का आधार पश्चीमी देशों में विकसित मनोविज्ञान है जो विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित है. हिन्दू जीवन दर्शन पर आधारित भारतीय शिक्षा दर्शन के अनुसार बालक के सर्वांगीण विकास की अवधारणा विशुद्ध आध्यात्मिक है. परिपूर्ण मानव के विकास के संकल्पना पश्चिमी मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण पद्धति के द्वारा पूर्ण होना कदापि संभव नहीं है. अतः विद्या भारती ने भारतीय मनोविज्ञान का विकास किया है और उसी पर अपनी शिक्षण पद्धति को आधारित किया है तथा उसका नामकरण
"सरस्वती पंचपदीय शिक्षण विधि" उसके पांच पद हैं :- १- अधीति, २. बोध, ३. अभ्यास, ४. प्रसार-स्वाध्याय एवं प्रवचन. प्राथमिक स्तर पर "सरस्वती शिशु मंदिर शिक्षण पद्धति" तथा 5. पूर्व प्राथमिक स्तर पर "शिशु वाटिका शिक्षण पद्धति" के नाम से इसे शिक्षा जगत में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई.
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विद्या भारती का कार्य कई वर्षों से चलने के कारण अपने विद्यालयों में पढ़े हुए छात्र बड़ी संख्या में समाज में प्रतिष्ठित हो चुके हैं | इन पूर्व छात्रों से सतत संपर्क बना रहे, इस उद्देश्य से सभी विद्यालयों में एवं प्रांतीय स्तर पर "पूर्व छात्र परिषदों" का संगठन सक्रिय है | इससे उनके संस्कारों का तो पुनर्जागरण होता ही है, साथ ही विद्या भारती के अनेक सेवा प्रकल्पों में उनकी व्यक्तिगत तथा आर्थिक रूप में सक्रिय सहभागिता रहती है |प्रांत में हजारों की संख्या में पूर्व छात्र सक्रिय हैं |
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संस्कार केंद्र योजना
भारत में ही नहीं अपितु विश्व में यह सबसे बड़ा गैर सरकारी शैक्षणिक संगठन है. इसका कार्य समाज की सहायता के बल पर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है. विद्या भारती का कार्य प्रारम्भ से आज कई गुना बढ़ गया है. किन्तु ये सब आंकड़े समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं एवं देश की विशालता की तुलना में बहुत कम हैं. विद्या भारती के मानवीय एवं आर्थिक संसाधनों की भी एक सीमा है. वनवासी पिछड़े एवं उपेक्षित क्षेत्रों में विद्यालय निशुल्क चलाने के साथ-साथ छात्रों के भोजन, वस्त्र, पुस्तकों आदि की भी संस्था की ओर से व्यवस्था करनी होती है क्योंकि उन क्षेत्रों में निर्धनता एवं अभावग्रस्त समाज को दो समय पेट भरकर भोजन भी नहीं मिलता. फिर वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए व्यय कहाँ से कर सकते हैं. देश और समाज की इस अवस्था में और विद्या भारती अपने सीमित साधनों के कारण अधिक विद्यालय स्थापित करने में असमर्थ है. अतः विद्या भारती ने संस्कार केंद्र जिनको सरकारी प्रचलित भाषा में एकल शिक्षक विद्यालय कहा जाता है, अधिक से अधिक संख्या में खोलने की देशव्यापी योजना बनायी है. इन केन्द्रों पर साक्षरता, स्वाध्याय, स्वावलंबन, संस्कृति, स्वदेश प्रेम एवं सामाजिक समरसता के अनौपचारिक कार्यक्रम चलते हैं. ऐसे बालक-बालिकाएं जो पारिवारिक विवशतावश अथवा विद्यालयों की समीप में व्यवस्था न होने के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. उन्हें विशेष रूप से इन केन्द्रों पर एकत्रित कर साक्षर करने का प्रयास किया जाता है. जो बालक-बालिकाएं विद्यालय तो जाते हैं किन्तु पारिवारिक परिवेश के कारण शिक्षा में पिछड़ जाते हैं. उन्हें विशेष शिक्षण की व्यवस्था कर उनको अपनी कक्षा के स्तर के योग्य बनाया जाता है. गीत, कहानी, खेल, अभिनय आदि के क्रियाकलापों के माध्यम से इन्हें संस्कारित एवं विकसित किया जाता है. विद्या भारती के संस्कार केंद्र चार प्रकार के क्षेत्रों में चलाये जाते हैं. १. नगरों की उपेक्षित बस्तियों अर्थात झुग्गी-झोंपड़ियों में. २. नगरों में कान्वेंट या अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के बालक-बालिकाओं के लिए. ये बालक-बालिकाएं भी भारतीय संस्कृति एवं स्वधर्म के संस्कारों से हीन अर्द्ध-विकसित रहते हैं. अभिजात्य वर्ग के ये बालक-बालिकाएं प्रायः समाज के लिए अभिशाप के रूप में सिद्ध हो रहे हैं. अतः विद्या भारती ने इनके लिए संस्कार केन्द्रों की व्यवस्था की है. ३. ग्रामीण क्षेत्रों में. ४. वनवासी क्षेत्रों में. इन संस्कार केन्द्रों पर बालक-बालिकाओं के लिए शिक्षा और संस्कारों की व्यवस्था रहती ही है. साथ ही इनके माता-पिता एवं परिवारजनों में भी अनौपचारिक एवं संपर्क कार्यकर्मों के माध्यम से स्वस्थ, सुसंस्कृत,व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की चेतना जागृत की जाती है. संस्कार केन्द्रों की यह अभिनव योजना पू. डॉ. हेडगेवार जी की जन्मशताब्दी 1988-89 के अवसर पर विशेष अभियान लेकर आरम्भ की गयी. विद्या भारती ने अपने विद्यालयों से आग्रह किया है कि प्रत्येक विद्यालय कम से कम एक संस्कार केंद्र अवश्य चलाए. आशा है संस्कार केंद्र योजना समाज और सेवावृत्ति कार्यकर्ताओं के सहयोग से अवश्य सफल होगी
मध्य भारत प्रान्त में वर्तमान में 196 संस्कार केंद्र संचालित है.
श्री पुरुषोतम जोशी प्रान्त में पूर्णकालिक के रूप में संस्कार केंद्र का कार्य देख रहे है.
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विद्या भारती प्रकाशन
१. "विद्या भारती प्रदीपिका" त्रैमासिक पत्रिका, दिल्ली से प्रकाशित होती है. २. "देवपुत्र" मासिक पत्रिका बाल-किशोर छात्रों के लिए इंदौर से प्रकाशित होती है. ३. "भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका" लखनऊ से प्रकाशित होती है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक एवं संस्कृति ज्ञान परीक्षा सम्बन्धी पुस्तकें कुरुक्षेत्र से प्रकाशित होती हैं.
विद्या भारती मध्यभारत के प्रकाशन
१. "अभिनव प्रज्ञादीप" मासिक पत्रिका, भोपाल से प्रकाशित होती है. यह पत्रिका शिक्षकों हेतु है.
पत्रिका के संपादक का कार्य श्री नारायणसिंह चोहान देख रहे है.
बाबा सत्यनारायण मौर्य प्रतिष्ठान की मासिक पत्रिका अभिनव प्रज्ञादीप की संपादक टीम के साथ। आज बाबा का विशेष साक्षात्कार पत्रिका हेतु संपन्न हुआ।जनवरी के अंक में प्रकाशित होगा।
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विद्या भारती राष्ट्रीय विद्वत परिषद्
राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं प्रदेश स्तर पर विद्या भारती की विद्वत परिषदें गठित हैं. देश के विख्यात शिक्षाविदों एवं शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को इन परिषदों में मानसेवी सदस्यों के रूप में रखा गया है. समय-समय पर आवश्यकतानुसार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं प्रदेश स्तर पर गोष्ठियां एवं सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं. विद्या भारती को इन विशेषज्ञों एवं विद्वानों का परामर्श एवं मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है जिसके कारण कार्य को गति प्राप्त होती है. कार्य योजना : १. भारतीय संस्कृति एवं जीवनादर्शों के अनुरूप शिक्षा दर्शन विकसित करना जिससे अनुप्राणित होकर शिक्षा के लिए समर्पित कार्यकर्ता राष्ट्र की पुनर्निर्माण के पावन लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में विश्वासपूर्वक बढ़ सकें. २. शिक्षा का ऐसा स्वरुप विकसित करना जिसके माध्यम से भारत के अमूल्य आध्यामिक निधि, परम सत्य के अनुसन्धान में पूर्व पुरुषों के अनुभव एवं गौरवशाली परम्पराओं की राष्ट्रीय थाती को वर्तमान पीढ़ी को सौंपा जा सके और उसके समृद्धि में वह अपना योगदान करने में समर्थ हो सके. ३. विश्व के आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी उपलब्धियों का पूर्ण उपयोग करते हुए ऐसी शिक्षण प्रणाली एवं संसाधनों को विकसित करना है जिससे छात्रों के सर्वांगीण विकास के शैक्षिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के प्राप्ति सुलभ हो सके. ४. शारीरिक, योग एवं आध्यात्मिक, संगीत तथा संस्कृत शिक्षा के राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों, सहपाठ्य क्रियाकलापों एवं अनौपचारिक शिक्षा के आयोजनों से छात्रों में राष्ट्रीय एकता, चरित्रिक एवं सांस्कृतिक विकास को सुदृढ़ करना. ५. शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विभिन्न स्तरों पर व्यापक एवं प्रभावी रूप से संचालित करना जिससे कुशल, चरित्रवान एवं समर्पित शिक्षकों का निर्माण हो सके. ६. आधारभूत एवं व्यावहारिक अनुसन्धान एवं विकास के कार्यक्रमों का सञ्चालन एवं निर्देशन करना तथा भारतीय मनोविज्ञान को शिक्षण प्रक्रिया का आधार बनाने हेतु कार्य करना. ७. उपर्युक्त उद्देश्यों से अनुप्राणित देश में चल रहे शिक्षा संस्थानों को सम्बद्ध करना तथा उनका मार्गदर्शन करना. विशेष रूप से ग्रामीण, जनजातीय एवं उपेक्षित क्षेत्रों में कार्य विस्तार करना तथा इन क्षेत्रों में दिशा-दर्शी प्रकल्प स्थापित करना. ८. विद्या भारती राष्ट्रीय विद्वत्त परिषद् के माध्यम से राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तर की शैक्षिक संगोष्ठियां एवं परिचर्चाएं आयोजित करना तथा शिक्षाविदों एवं विचारकों का सहयोग एवं परामर्श प्राप्त करना. ९. भारत सरकार की राष्ट्रीय शैक्षिक योजनाओं एवं कार्यक्रमों में आवश्यक सहयोग एवं परामर्श प्रदान करना. १०. देश-विदेश में चल रहे शैक्षिक प्रयोगों एवं अनुभवों के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में कार्य करना एवं उनसे सक्रिय संपर्क स्थापित करना.
भारतीय शिक्षा शोध संस्थान
आचार्यों के द्वारा शिक्षण में नए-नए प्रयोग एवं शोध (रिसर्च) करने के लिए, जबलपुर, उज्जैन, जयपुर,चंडीगढ़, मेरठ और वाराणसी में शोध केंद्र खोले गए हैं. भारतीय शिक्षा शोध संस्थान, लखनऊ में स्थित है. जहाँ से "भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका" का प्रकाशन नियमित रूप से होता है. यह पत्रिका विशेष रूप से आचार्यों के लिए प्रेरणादायक एवं लाभप्रद है. शोध कार्य का मुख्य क्षेत्र शिक्षण पद्धति, भारतीय शिक्षा मनोविज्ञान, अभिवृत्तियों का मापन, परीक्षण एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन आदि करना है
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आवासीय विद्यालय
भैया बहिनों के सर्वांगीण विकास हेतु मध्यभारत प्रान्त में 10 आवासीय विद्यालय संचालित है 01- सरस्वती विद्या मंदिर,शारदा विहारशारदा विहार परिसर केरवा डेम मार्ग, भोपालसंपर्क - प्रबंधक , अजय शिवहरे - 9826613055संपर्क - प्राचार्य , राजेश तिवारी 9826778036कक्षा 6 से 12 तक CBSE से संचालित http://shardavihar.org/
02-सरस्वती विद्यापीठ,शिवपुरीसरस्वती विद्यापीठ,शिवपुरी लिंक रोड शिवपुरीसंपर्क - प्रबंधक , राजेश लिटोरिया - 7694800280संपर्क - प्राचार्य ,गोपालसिंह राठोर 9425113180कक्षा 6 से 12 तकsaraswatividyapeethshivpuri.com
03-सरस्वती विद्या मंदिर,केदारधामफतेहपुर मार्ग , ग्वालियरसंपर्क - प्रबंधक , सुनील दीक्षित - 9039641121संपर्क - प्राचार्य ,मुकुटबिहारी शर्मा - 9926268294कक्षा 6 से 12 तक CBSE से संचालितhttp://ssmkedardham.com/
04-सरस्वती विद्या मंदिर,भारत भारतीभारत भारती परिसर जामठी जिला-बैतुल
संपर्क - प्रबंधक , मोहन नागर - 9754811555 संपर्क - प्राचार्य , राहुल ठाकरे 9425105022 कक्षा 6 से 12 तक
05-सरस्वती विद्या मंदिर,नरेला बैरसिया विद्याविहार नरेला, बैरसिया संपर्क - प्राचार्य , गोविन्द कारपेंटर 9425663903 कक्षा 6 से 10 तक
06-सरस्वती विद्या मंदिर,सियारमउ |
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सियारमउ जिला-रायसेनसंपर्क - प्रबंधक , नीलेश चतुर्वेदी 9406566585संपर्क - प्राचार्य , शैलेन्द्र माथुर 9993148131कक्षा 6 से 10 तक
07-सरस्वती विद्या मंदिर,गोविंदनगरगोविंदनगर बनखेडी जिला-होशंगाबादसंपर्क - प्रबंधक , अनिल अग्रवाल 7694800257संपर्क - प्राचार्य , अनिल अग्रवाल 9425429647कक्षा 6 से 12 तक http://bbslgovindnagar.org/Home.aspx
08-बालिका विद्यालय, भारती निकेतनबी सेक्टर बरखेडा भेल, भोपालसंपर्क - प्रबंधक , सुनील नायर 9993040830, 7747001763संपर्क - प्राचार्य , श्रीमती शाम्भवी शर्मा 9425036011कक्षा 6 से 12 तक (केबल बहिनों हेतु )
09- वैदिक विद्यापीठं , चिचोट कुटी बाबा बजरंगदास कुटी चिचोट छिपानेर जिला - हरदा संपर्क - प्रबंधक , गगन देवड़ा 09926345453कक्षा 6 से 10 तक (संस्कृत विषयक शास्त्र का अध्ययन)
10 - स.वि.म. आवासीय विद्यालय, माता वेदरी माता वेदरी तहसील बैरसिया जिला - भोपाल संपर्क - प्रबंधक , नारायण चोहान 07694800266कक्षा 6 से 10 तक (ग्राम्य शिक्षा का प्रकल्प )
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गतिविधियाँ
सभी बच्चों के समग्र विकास के लिए, केवल पुस्तकों का अध्ययन ही पर्याप्त नहीं है | एक बच्चा एक निष्क्रिय बीज के समान होता है | यदि बीज को अनुकूल परिस्थितियाँ मिलेंगी तभी वह विकसित होगा और एक बड़ा पेड़ बनेगा | हमारे विद्यालय छात्र - छात्राओं सर्वांगीण विकास के लिए उनके के लिए अनुकूल परिस्थितियों प्रदान करता है | विद्यालय हर बच्चे एक मंच की तरह है जहां वह शिक्षकों से दिशा निर्देश प्राप्त करतें हैं |
सह पाठयक्रम गतिविधियाँ
सह पाठयक्रम गतिविधियाँ मन की विभिन्न विकास के लिए आवश्यक हैं | विद्यालय शिक्षाविदों के साथ सह पाठयक्रम को एकीकृत कर हमारे विद्यार्थियों के लिए सबसे सुखद के शिक्षण गतिविधियाँ बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है | सह पाठयक्रम गतिविधियाँ नियमित रूप से हमारे विद्यालय द्वारा आयोजित की जाती हैं | जिसमें संगीत (मुखर और वाद्य) , नाटक, वाद - विवाद , तात्कालिक वाद - विवाद , कला एवं शिल्प, नृत्य, ड्राइंग, पेंटिंग, फोटोग्राफी, बागवानी,प्रिंटिंग, अंग्रेजी , व्यतित्व विकास एवं सुलेख इत्यादि सम्मिलित हैं | हम यह सुनिश्चित करतें हैं की प्रत्येक बच्चे को अवसर मिले ताकि शिक्षकों सक्षम एवं उनकी देखरेख छात्र - छात्राओं का समग्र विकास हो |
खेल
खेल में छात्र - छात्राओं भागीदारी से न केवल उनकी शारीरिक विकास के लिए उत्तम है बल्कि टीम भावना को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है | इसलिए विद्यालय विभिन्न आयु समूहों के लिए विभिन्न खेलों को बढ़ावा देकर प्रत्येक बच्चे के स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करता है | खेल के लिए विद्यालय क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बास्केट बॉल, खो-खो, कबड्डी इत्यादि के लिए सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं. साथ ही साथ इन्डोर गेम्स के लिए टेबल टेनिस, बैडमिंटन, शतरंज, कैरम इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध करा हैं |
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सभी बच्चों के समग्र विकास के लिए, केवल पुस्तकों का अध्ययन ही पर्याप्त नहीं है | एक बच्चा एक निष्क्रिय बीज के समान होता है | यदि बीज को अनुकूल परिस्थितियाँ मिलेंगी तभी वह विकसित होगा और एक बड़ा पेड़ बनेगा | हमारे विद्यालय छात्र - छात्राओं सर्वांगीण विकास के लिए उनके के लिए अनुकूल परिस्थितियों प्रदान करता है | विद्यालय हर बच्चे एक मंच की तरह है जहां वह शिक्षकों से दिशा निर्देश प्राप्त करतें हैं |
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सह पाठयक्रम गतिविधियाँ मन की विभिन्न विकास के लिए आवश्यक हैं | विद्यालय शिक्षाविदों के साथ सह पाठयक्रम को एकीकृत कर हमारे विद्यार्थियों के लिए सबसे सुखद के शिक्षण गतिविधियाँ बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है | सह पाठयक्रम गतिविधियाँ नियमित रूप से हमारे विद्यालय द्वारा आयोजित की जाती हैं | जिसमें संगीत (मुखर और वाद्य) , नाटक, वाद - विवाद , तात्कालिक वाद - विवाद , कला एवं शिल्प, नृत्य, ड्राइंग, पेंटिंग, फोटोग्राफी, बागवानी,प्रिंटिंग, अंग्रेजी , व्यतित्व विकास एवं सुलेख इत्यादि सम्मिलित हैं | हम यह सुनिश्चित करतें हैं की प्रत्येक बच्चे को अवसर मिले ताकि शिक्षकों सक्षम एवं उनकी देखरेख छात्र - छात्राओं का समग्र विकास हो |
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खेल में छात्र - छात्राओं भागीदारी से न केवल उनकी शारीरिक विकास के लिए उत्तम है बल्कि टीम भावना को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है | इसलिए विद्यालय विभिन्न आयु समूहों के लिए विभिन्न खेलों को बढ़ावा देकर प्रत्येक बच्चे के स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करता है | खेल के लिए विद्यालय क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बास्केट बॉल, खो-खो, कबड्डी इत्यादि के लिए सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं. साथ ही साथ इन्डोर गेम्स के लिए टेबल टेनिस, बैडमिंटन, शतरंज, कैरम इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध करा हैं|
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राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मेला -
छात्रों में विज्ञान, वैदिक गणित तथा संस्कृति के प्रति रूचि संवर्धन हो, इस हेतु से विद्याभारती महाकोशल प्रान्त के निर्देशन में छात्र अपने विद्यालय, संकुल तथा प्रांतीय ज्ञान-विज्ञान मेले में अपना कौशल दिखा कर, क्षेत्रीय स्तर पर स्थान प्राप्त करके राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मेले में प्रतिभागिता करते हैं। छात्रों में इस मेले द्वारा जो उर्जा संचरित होती है, वही हमारी बहुमूल्य निधि है, जिसे हम ऐसे आयोजनों के माध्यम से सुरक्षित रखते हैं।
अखिल भारतीय खेल-कूद प्रतियोगिताएँ -
‘शरीरमाधं खलु धर्म साधनम’ इस ध्येय वाक्य का स्मरण करते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु शरीर की महत्ता को केंद्र में रखकर विद्या भारती बालको के सवर्गिण विकास हेतु खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन करती है। विद्यालय, संकुल, प्रांत तथा क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर छात्र राष्ट्रीय खेल-कूद प्रतियोगिता में प्रतिभागिता करता है।
संस्कृति ज्ञान परीक्षा -
हमारी भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन संस्कृति है। संस्कृति ही जीवन का आधार होती है। वर्तमान शिक्षा पद्धति से संस्कृति का यह भाव समाप्त होता जा रहा है। उसी मूल भाव को पुनजागृत करने हेतु छात्रों को अपनी संस्कृति का बोध कराना परम आवश्यक है। इसी निमित्त विद्या भारती कक्षा चौथी से बारहवी के छात्रों एवं आचार्यों के लिए इस परीक्षा का आयोजन करती है।
आचार्य विकास एवं प्रशिक्षण वर्ग -
शिक्षा एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं हो सकता, आजीवन सीखने की संभावनाएं उनमे बनी ही रहती हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर विद्या भारती महाकोशल प्रान्त द्वरा प्रतिवर्ष "आचार्य विकास वर्ग” एवं विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण वर्गों का आयोजन किया जाता है |
संस्कार केंद्र -
शिक्षा एवं संस्कार के अभाव में बालक के पथ-भ्रष्ट होने की संभावनायें बनी रहती हैं, अत:विद्या भारती की योजना अनुसार समाज में जो वंचित एवं उपेक्षित क्षेत्र है उन तक अच्छी शिक्षा तथा अच्छे संस्कार पहुँचे, इस निमित विद्यालयों के माध्यम से बाल संस्कार केन्द्रों का संचालन यह समिति अनेक वर्षों से करती आ रही है।
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