आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। साधारण भाषा में गुरु वह व्यक्ति हैं जो ज्ञान की गंगा बहाते हैं और हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा मुहूर्त
जुलाई 16, 2019 को 01:50:24 से पूर्णिमा आरम्भ
जुलाई 17, 2019 को 03:10:05 पर पूर्णिमा समाप्त
1. गुरु पूजा और श्री व्यास पूजा के लिए पूर्णिमा तिथि को सूर्योदय के बाद तीन मुहूर्त तक व्याप्त होना आवश्यक है।
2. यदि पूर्णिमा तिथि तीन मुहूर्त से कम हो तो यह पर्व पहले दिन मनाया जाता है।
गुरु पूजन विधि
1. इस दिन प्रातःकाल स्नान पूजा आदि नित्यकर्मों को करके उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
2. फिर व्यास जी के चित्र को सुगन्धित फूल या माला चढ़ाकर अपने गुरु के पास जाना चाहिए। उन्हें ऊँचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए।
3. इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर कुछ दक्षिणा यथासामर्थ्य धन के रूप में भेंट करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा महत्व
पौराणिक काल के महान व्यक्तित्व, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था; ऐसी मान्यता है।
वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास तीनों कालों के ज्ञाता थे। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देख कर यह जान लिया था कि कलियुग में धर्म के प्रति लोगों की रुचि कम हो जाएगी। धर्म में रुचि कम होने के कारण मनुष्य ईश्वर में विश्वास न रखने वाला, कर्तव्य से विमुख और कम आयु वाला हो जाएगा। एक बड़े और सम्पूर्ण वेद का अध्ययन करना उसके बस की बात नहीं होगी। इसीलिये महर्षि व्यास ने वेद को चार भागों में बाँट दिया जिससे कि अल्प बुद्धि और अल्प स्मरण शक्ति रखने वाले लोग भी वेदों का अध्ययन करके लाभ उठा सकें।
व्यास जी ने वेदों को अलग-अलग खण्डों में बाँटने के बाद उनका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा। वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान अपने प्रिय शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पैल और जैमिन को दिया।
वेदों में मौजूद ज्ञान अत्यंत रहस्यमयी और मुश्किल होने के कारण ही वेद व्यास जी ने पुराणों की रचना पाँचवे वेद के रूप में की, जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक किस्से-कहानियों के रूप में समझाया गया है। पुराणों का ज्ञान उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को दिया।
व्यास जी के शिष्यों ने अपनी बुद्धि बल के अनुसार उन वेदों को अनेक शाखाओं और उप-शाखाओं में बाँट दिया। महर्षि व्यास ने महाभारत की रचना भी की थी। वे हमारे आदि-गुरु माने जाते हैं। गुरु पूर्णिमा का यह प्रसिद्ध त्यौहार व्यास जी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इस पर्व को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। हमें अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
1. इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु परिवार में जो भी बड़ा है अर्थात माता-पिता, भाई-बहन, आदि को भी गुरु तुल्य समझना चाहिए।
2. गुरु की कृपा से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृद्य का अज्ञान व अन्धकार दूर होता है।
3. गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की सम्पूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है।
4. गुरु से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी यह दिन श्रेष्ठ है।
5. इस दिन गुरुजनों की यथा संभव सेवा करने का बहुत महत्व है।
6. इसलिए इस पर्व को श्रद्धापूर्वक जरूर मनाना चाहिए।
हम आशा करते हैं कि यह गुरु पूर्णिमा आपके लिए अत्यन्त शुभकारी रहे। गुरु पूर्णिमा की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!